Thursday, April 5, 2012

कुछ कहती है यह पंक्तिया


"तुम्हारी मुस्कान है बिखेरती खुशियाँ चारो ओर,
विसुरणों को भुलाकर देखो मैं भी खिल-खिला उठी,
जादू है इन लबों की हरकत में,
जो मैं अपने ग़मों को भुला गयी,
चेतना नयी जाग उठी तुम्हारी बातों से,
प्रफुलित हुआ यह मान तुम्हारे परिचय से,
उम्मीद है यह रिश्ता कायम रहे अनंत तक,
क्योंकि मुस्कुराने की चाह मुझमें है अब बढ़ गयी."


"हवा की झोके की तरह आए तुम
और आंधी की तरह सब तबाह कर चल दिए,
बंजर बन गयी मेरी हरी-भरी बढती बगियाँ.
जो तुम इस तरह धोके की लपटों में उसे जला बैठे."

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