Monday, September 28, 2015

--१--

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यहां कितना सूनापन है
शोर के बीच
गहरा सन्नाटा
संवादों में खोखलापन
सतही होते विचार
प्लास्टिक की दुनिया में
बेजान हैं संवेदनाएं
और
मन पर
न भावनाओं की फुहारों का कोई असर
न कोई उष्मा
न प्रेम का कोई ताप
अब शेष है
केवल पतले होते रिश्तों के धागे
बिखरे हुए मन और घर
सिकुड़ता हुआ अपनापन

- सोनम