Saturday, September 22, 2012

सरल, सृजन, सचेत: अटल बिहारी वाजपेयी


                                                                                             
श्री अटल बिहारी वाजपेयी
"एक हाथ में सृजन,                                                                          
        दूसरे में हम प्रलय लिए चलते हैं,                                                  
सभी कीर्ति ज्वाला में जलते,
        आँखों में वैभव के सपने,
पग में तूफानों की गति हो,
        राष्ट्रभक्ति का ज्वर रुकता,
आये जिस-जिस की हिम्मत हो."
                 उपर्युक्त लिखी यह पंक्तियां दुश्मनों को ललकारने के साथ-साथ सृजन और प्रलय से एक साथ  खेलनेवाले राष्ट्रप्रेमी अटल बिहारी वाजपेयी की निर्भीक भावनाएं व्यक्त करती है.
        बचपन में टीवी पर जब भी मैं अटलजी का कछुवें की गति से चलता भाषण सुनती तो हमेशा ऊब  जाती और सोचती के यह बढे ढीले किस्म के प्रधानमंत्री है. शायद इनको कोई ज्ञान नहीं इसलिए इतना सोच-सोच कर बोलते है. मेरा बालमन उस वक़्त यह नहीं समझ पाया कि यह धीमी गति देश पर अपनी अमिट छाप छोड़नेवाले राजनेता के सय्यम, विवेक और अनुभव का फल है.  

शिक्षा के मार्ग पर:
               25 दिसंबर 1924, ग्वालियर की गलियों में पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर जन्में अटल बिहारी वाजपेयी एक सफल राजनीतिज्ञ के साथ-साथ कवि भी रहे. अटल जी की बी०ए० की शिक्षा ग्वालियर के लक्ष्मीबाई कालेज में हुई. उनका परिवार संघ के प्रति निष्टावान था. इसलिए छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे. कानपुर के डी०ए०वी० कालेज से राजनीति शास्त्र में उन्होंने एम०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. उसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपूर में ही एल०एल०बी० की पढ़ाई भी प्रारम्भ की. पिता और पुत्र का एक ही कक्षा में एकसाथ अध्ययन करना लोगों के लिए अजूबे की बात बन गयी थी. इस जोड़े की कहनियाँ कई वर्षो तक डी०ए०वी० कालेज में प्रचलित रही. साथ ही लोग इस जोड़ी को देखने उनके छात्रावास तक पहुंच जातेलेकिन किन्ही कारणों से उन्होंने पढाई बगैर पूरी किये संघ कार्य में बेहद निष्ठा से जुट गए. एक विद्यालय में छात्रों और शिक्षको को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था,"विद्यालय एक पावन मंदिर होता है. एक अनुष्ठान का स्थान होता है, वह केवल सटिफिकेट बांटने का कारखाना नहीं होता." बिडंबना है कि आज-कल के संस्थानों के लिए तो शिक्षा बिकाऊ बन गयी है. शिक्षको के प्रति उनमें अटूट श्रद्धा रही हैअध्यापक को शिक्षा का धुरी माननेवाले अटलजी अध्यापन की दुनियां में अपना जीवन बिताना चाहते थे. लेकिन डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान ने उन्हें झकझोर दिया तथा राष्ट्रनिर्माण की दिशा में बढ़ने के लिए व्याकुल कर दिया.
राजनीति में कदम :
                1955 में जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में लखनऊ की संसदीय सीट के लिए चुनाव लड़े लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें हार हासिल हुई. "हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूँ." यह पंक्तियाँ लिखनेवाला कवि निराश होकर हार कैसे मानता. दो साल बाद ही दूसरे आमचुनाव में बलरामपुर से जीत कर वे संसद पहुंचे. तब से वे राजनीति का दामन थाम राष्ट्र्चिन्तन  में डूब गए. वह भारतीय जनसंघ की स्थापना करनेवालों में से एक हैं और सन् 1968 से 1973 तक वह उसके अध्यक्ष भी रह चुके हैंमोरारजी देसाई की सरकार में सन् 1977 से 1979 तक वे विदेश मंत्री रहे और विदेश निति के नए आयाम तलाशने में जुट गएआजीवन अविवाहित रहने का प्रण लिए अटलजी को सन 1996 में 13 दिन के प्रधानमंत्रित्व के बाद बहुमत के आभाव में इस्तीफा देना पड़ा1980 में जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर उन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की. "भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है- ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो।" देश के प्रति ऐसी दृष्टि रखनेवाले अटलजी ने सन 1998 से 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने नई टेलीकॉम नीति तथा कोंकण रेलवे की शुरुआत की. साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं. इसके अलावा आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए अर्बन सीलिंग एक्ट समाप्त किया तथा ग्रामीण रोजगार सृजन एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिये बीमा योजना शुरू कीप्रधानमंत्री अटलजी ने पोखरण में अणु-परीक्षण करके संसार को भारत की शक्ति का एहसास करा दिया.
राजनीति और काव्य में संतुलन:
                विरासत में मिली काव्य के गुण को उन्होंने राजनीति के कारण दबने नहीं दिया. जब भी उन्हें समय मिलता वे तुकबंदी करने बैठ जाते. वे अपनी कविताओं की दुनियां में अटल होकरकैदी कवि राय’ कहलाना ज्यादा पसंद करते थेइसी सृजनता के चलते उन्होने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्मपांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी कियाअटल जी की कलम में कुछ ऐसा जादू रहा कि पत्र की प्रति हाथ में आते ही लोग पहले संपादकीय पढ़ते थे, बाद में समाचार आदि. ऐसा कोई ही देश होगा जहां अटलजी के कदम ना पड़े होउन्होंने एक यायावर की तरह देश व् विश्व के कोने-कोने का भ्रमण किया है. इतने सारे व्यापक अनुभवों की संपदा ने उनके सोच की दुनियां को संवारा है और उसी सोच को उन्होंने अपनी कविताओं में उतारा है. कवि और राजनितिक कार्यकर्त्ता के बीच मेल बिठाने का निरंतर प्रयास करनेवाले अटलजी कहते है,"राजनीति ने मेरी काव्य रसधारा को अवरुद्ध किया है." उनके अनुसार उनके भीतर के कवि ने उन्हें राजनीति के लिए एक नयी दृष्टि प्रदान की है. उनका हिंदी के प्रति बेहद लगाव था. विदेश मंत्री के रूप में 1977 को संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच से उन्होंने हिंदी में भाषण देकर हिंदी को गौरान्वित किया. व्यर्थ के अभिप्रायों का वे बेहद विवेक के साथ उत्तर देते थे. फिर चाहे वह कीचड़ की छीटे राजनेता के लिए या कैदी कवि राय की रचनाओं पर पड़ी होवे बेहद सरलता सहजता से विनोदी उत्तर देकर मामले को हल्का कर देते थे. कन्हैयालाल नंदन ने अटलजी की कविताओं के सन्दर्भ में कहा है," अटलजी की कवितायेँ उन अनुभवों और स्मृतियों के विशाल फलक पर खुदे हुए उनके अपने समय के स्तिथिजन्य शिलालेख है."
        मृत्यों से दो-दो हाथ करने का सामर्थ्य रखनेवाले अटलजी का कभी कोई व्यक्तिगत विरोधाभास नहीं दिखा. सन 1992 को उन्हें पद्‍मविभूषण से अलंकृत किया गया. 1994 को उनके सेवाभावी, स्वार्थत्यागी तथा समर्पणशील सार्वजनिक जीवन के लिए 'लोकमान्य तिलक सम्मान' से सम्मानित किया. 17 अगस्त, 1994 को संसद ने उन्हें सर्वसम्मति से 'सर्वश्रेष्ठ सांसद' का सम्मान दिया गया. हालहिं में उन्हें हिस्टरी इंडिया चैनल द्वारा महान भारतीय (द ग्रेट इंडियन) के शीर्ष 10 महारतियों के बीच शामिल किया गया था.  अपने देश के प्रति निष्टावान व् सिद्ध हिंदी कवि रहे बिहारीजी फ़िलहाल राजनीति से संन्यास ले चुके है. विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के निर्माण में उनका योगदान इतिहास के सुनहरे पन्नो पर लिखा जायेगा. आज देश में जहां भ्रष्टाचार, घोटालों, महंगाई का बोल-बाला है वहां अटलजी जैसे राजनेताओं की सख्त जरुरत है.