Thursday, December 5, 2013

भगवान के लिए भगवान मत बनाओ सचिन को।




- सोनम गुप्ता

पिछले दिनों सचिन के आखिरी मैच को लेकर पूरे देश में एक प्रकार का जुनूनी उत्साह था, जो देखते ही बनता था। मुंबई के साथ-साथ पूरा देश सचिन के आखिरी मैच के लिए तैयार हो रहा था। उनकी बिदाई को लेकर रो रहा था। इसी दरमियान कई टीवी चैनलों से लेकर अख़बारों तक व उनके कई फैन्स ने सचिन को भगवान संबोधित किया। उन्हें क्रिकेट का भगवान घोषित कर दिया। इसमें कोई दोराय नहीं की सचिन सचमुच एक अद्भुत खिलाड़ी हैं। क्रिकेट को लेकर उनका संघर्ष और उसके लिए समर्पण सराहनीय हैं। उनकी एकाग्रता, उनके शांत व स्पोर्टसमैन स्पीरिट को, उनके अद्वितीय व्यक्तित्व को जरुर स्कूल में बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए। उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए देश के सर्वोच्च सम्मानों द्वारा उन्हें जरुर नवाजा जाना चाहिए। भारत रत्न देकर उनकी उपलब्धियों को सम्मानित करना चाहिए।
लेकिन उनके 24 वर्षों के अद्भुत खेल प्रदर्शन के लिए उन्हें भगवान घोषित करना क्या सही है? मेरे ख्याल से बिलकुल नहीं। सचिन तेंदुलकर हमारी ही तरह हाड़-मांस के बने एक मनुष्य हैं। जिन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से आज पूरे विश्व में अपने बल्ले का लोहा मनवाया है। उन्हें ईश्वर बनाकर उनके संघर्ष को, मेहनत को हम करिश्माई जादू बताना चाहते हैं।  जिस तरह हमारे पुराणों और कथाओं में चमत्कारिक कृत्तित्व करनेवाले पात्र को हम ईश्वर मानते हैं। उसी तरह सचिन को भगवान कहना उनके मेहनत पर, उनके परिश्रम पर सवाल ऊठाना होगा।
दरसल हमें पत्थर से लेकर पानी तक में भगवान खोजने की आदत-सी पड़ गई हैं।  हमे अपने में ऊर्जा संचारित करने के लिए हमेशा किसी न किसी मूर्ति, आकार की जरुरत पड़ती है। हम या तो राम को पूजते हैं या बूरे कर्मकरनेवाले रावण को जलाते हैं। कर्तव्यनिष्ठ लक्ष्मण, सत्य का दामन थामनेवाले विभीषण को हम ईश्वर के रूप में नहीं मानते। क्योंकि हम हमेशा एक सुपर हीरो या सुपर विलन की तलाश में होते हैं। ग्रे चरित्र यानि व्यवहारिक चरित्र के लिए हमारे जीवन में कोई जगह नहीं होती। हम क्यों नहीं सचिन को भगवान की तरह पूजने के बजाय, उनके तस्वीर की आरती उतारने की बजाय उनके पराक्रम के लिए गौरान्वित महसूस करते? क्यों केवल एक खिलाड़ी की जगह ही रखकर उन्हें सर्वश्रेष्ठ उदहारण की तरह पेश करते? उनकी सफलता का श्रेय उनकी मेहनत को देने की बजाय उसे किसी करिश्मा का नाम क्यों देना चाहते हैं  हम?
अगर सचिन को भगवान कहना है, तो हमे भगवान की एक परिभाषा  गढ़नी होगी। फिर उसमें फिट बैठनेवाले हर व्यक्ति को ईश्वर घोषित करना होगा।
सचिन बेहद जमीन से जुड़े हुए इंसान हैं। वे हमेशा राजनीतिक से लेकर सामाजिक सभी विवादों से बचते हुए आए हैं। उनके फैन जितना उनसे प्रेम करते हैं, वे उतना  ही उनके लिए कृतघ्य होते हैं। मुझे नहीं लगता कि सचिन जो गणपति बाप्पा में बेहद मान्यता रखते हैं, उन्हें उनके बगल में बिठाने की उनके फैन्स की कवायद उन्हें अच्छी लगती होगी।
हमारी आनेवाले पीढ़ी को कौन-से सचिन ज्यादा प्रेरित करेंगे? सचिन भगवान के रूप में या मुंबई की गलियों में एक आम बच्चे की तरह धूप में अपने पसीने बहाकर, अथक लंबी दौड़ लगाकर क्रिकेट जगत में छा जानेवाला सचिन रमेश तेंदुलकर!  सचिन आम में ख़ास जरुर हैं। लेकिन किसी करिश्में या चमत्कार की वजह से नहीं बल्कि अपनी ईच्छाशक्ति, मेहनत और लगन  के चलते हैं। ऊनके परिवार, उनके दोस्तों का साथ उन्हें द सचिन बनाता हैं।
            सचिन एक खिलाड़ी थे, खिलाड़ी हैं और हमेशा खिलाड़ी रहेंगे। गलियों में चौका-छक्का मारनेवाले, हर घुंघराले बालवाले बच्चे हमेशा सचिन के नाम से ही पुकारे जाएंगे। न कि सचिन के भक्त या सचिन के पूजारी।