- सोनम गुप्ता
एक अंजान ने यूंही पूछ लिया कि आप पत्रकार लोग तो खूब नॉलेजबल होते हैं न! देश-दुनिया की खबर रखते हैं। मैंने मुस्कुराकर कहा कितने पत्रकार नॉलेजबल होते हैं, इसका पता नहीं, पर हाँ, वे अपडेटेड जरूर होते हैं। केवल पत्रकार ही क्यों आज की हमारी ज्यादातर टेक-सेवी पीढ़ी अपडेटेड तो खूब है। लेकिन नॉलेज बिरले ही किसी के पास होता है। पल-पल अपडेट होते न्यूज़ पोर्टलों और गूगल ज्ञान ने हमें त्वरित जानकारी तो दी। लेकिन स्थाई ज्ञान और जानकारी का बोध देने में असफल साबित हुआ। आधा-अधूरा ज्ञान ही अफवाओं और गलत जानकारी फैलाने का सबब बनता है। इसका सबसे ताजा उदाहरण है मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला। व्यापम एक घोटाला है और इस घोटाले में आरोपितों के बारे में अपडेटेड तो सभी थे, लेकिन जब इनसे पूछा गया कि व्यापम घोटाला किस सन्दर्भ में है तो अजीबो-गरीब जवाब मिले। यानि 20 मिनट में 100 खबरें तो देख लीं, लेकिन खबर के सिर-पैर का पता नहीं।
ऐसा नहीं कि हमारे पास सीखने के लिए चीज़ों की कमी है। बल्कि मामला तो यह है कि आज-कल हम सब मल्टी-टास्किंग के शिकार हो गए हैं। एक साथ कई चीज़ें जानना और फिर हर चीज़ की जानकारी रखना हमारे दिमाग को बेवजह थका रहा है। हम अपने आस-पास के अनुभवों से ही अपने फैसलों को आकार देते हैं। और फ़िलहाल अपने आस-पास लोगों को स्विमिंग, स्केटिंग, कत्थक, कैंडल मेकिंग, कुकिंग, कोचिंग, ड्राइविंग, इत्यादि एक साथ सीखते देखकर सोचते हैं जब वह कर सकता या कर सकती है तो मैं क्यों नहीं। कुछ यही हाल महिलाओं का भी हो चला है घर, बच्चे, दफ्तर सबकुछ एकसाथ संभालने की होड़ में लगी हुई हैं। इस चक्कर में किसी एक का भी पूरा लुत्फ़ नहीं उठा पा रही हैं। जो लोग कई सारे काम एकसाथ कर रहे हैं, वे हमारी ही अपनी पीढ़ी के हैं। हम नहीं जानते कि इस मल्टी-टास्किंग का उनके भविष्य पर क्या असर पड़ेगा? मानसिक और शारीरिक दोनों मोर्चों पर उनका भविष्य कैसा होगा?
पहले के समय में किसी एक कला को या किसी एक चीज़ के बारे में ज्ञान हासिल करने के लिए एक विद्यार्थी अपना आधा से ज्यादा जीवन समर्पित कर देता था। आज बढ़ती टेक्नोलॉजी और जानकारी के त्वरित स्रोतों के मौजूद होने से इतना समय गंवाने की जरुरत नहीं है। लेकिन बेवजह भेड़चाल में शामिल होने में भी कहां कि समझदारी है? स्लो होने में कोई बुराई नहीं है। और ये भी जरुरी नहीं कि अपने समय की हर चीज़ आपके पास हो या आपको मालूम हो। धीमी गति से जीवन जीने का भी अपना ही मजा है। मनोवैज्ञानिकों की माने तो आहिस्ता-आहिस्ता संयम के साथ किए गए अध्ययन स्थाई होते हैं। जिससे इन्हे याद रखने के जद्दोजहद भी नहीं करनी पड़ती। जानकारी दिमाग के उस कोने में जाकर बैठती है, जो इन्हे लम्बे समय तक दिमाग में बनाए रखता है। जल्दबाजी ही एक बड़ा कारण है कि आज-कल हम में से ज्यादातर लोग भूलने की बीमारी से पीड़ित हैं।
आज शरीर पर बेवजह का दबाव डालने से बहुत संभव है कि कल हमारा शरीर जवाब दे जाए। जिस तरह दुकान में कई सारे विकल्प देखकर हम असमंजस में पड़ जाते हैं, उसी तरह कई सारी चीज़ों का जानकार होना कई बार हमें दुविधा में डाल देता है। वैसे भी किसी एक चीज़ में तज्ञ होना अलग पहचान कायम करने में मदद कर सकता है। इसका ये बिलकुल मतलब नहीं कि हमें देश-दुनिया से खुद को काट लेना चाहिए। हर पल की जानकारी रखने की बजाय किसी एक जानकारी का गहन ज्ञान रखना ज्यादा बेहतर है।
क्या हम भविष्य में इस तरह कई सारे काम एकसाथ कर पाने के लिए संतुष्ट होंगे? क्या इस ढेर सारे इंफॉर्मेशन रखने की होड़ में सचमुच हम कुछ सीख पाएं हैं? क्या हमें किसी एक चीज़ के बारे में पूरा न सही आधा ज्ञान भी है? क्या बुढ़ापे में हमारा शरीर इस एक्स्ट्रा प्रेसर डालने की आदत को सहजता से स्वीकार पाएगा? आज हमें ३० की उम्र में डाइबटीज, बीपी, जैसी लाइफस्टाइल डिजीसेस क्यों होने लगी हैं? ऐसे सैकड़ों सवालों पर मल्टी-टास्किंग और ढेर सारी जानकारी बंटोरने की होड़ में शामिल होने से पहले एक बार जरूर विचार करना चाहिए।