Thursday, June 19, 2014

शिवसेना के 48 पायदान पार

शिवसेना के लिए सबसे ज्यादा सफल 48वां साल



मनोहर जेाशी और नारायण राणे शिवसेना के इतिहास में अब तक बने मुख्यमंत्री 


- सोनम गुप्ता

मुंबई। आमतौर पर 48 वर्ष की आयु में व्यक्ति को अधेड़ कहा जाता है। अधेड़ मतलब न तो बूढ़ा और न ही जवान। राजनीति और राजनीतिक दल के मामले में 48 वर्ष की उम्र युवा अवस्था के प्रारंभ का साल होता है। शिवसेना की स्थापना को 19 जून, गुरूवार को 48 साल पूरे हो गए है। सही मायनों में यही वह समय है, जब शिवसेना पूरे जेाश व उत्साह के साथ नौजवान नजर आ रही है। शिवसेना के लहराते हुए नवयौवन का कारण है, 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली अपार सफलता। शिवसेना ने महाराष्ट्र में 18 सीटें जीतकर अपने युवा व ताकतवर होने का नजारा दिखा दिया है।
   उत्साह और उमंग का ही नतीजा है कि शिवसेना ने अपने स्थापना दिवस पर पहली बार दो दिवसीय चर्चा-परिचर्चा, विचार-विमर्श और भविष्य व निकट भविष्य में होनेवाले विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने के लिए लगातार दो दिन तक मंथन की प्रक्रिया बांद्रा के रंगशारदा में आयोजित की। 


शिवसेना की चर्चित शिवजी पार्क की दशहरा रैली 


शिवसेना के 4 बड़े बागी - भुजबल, राणे, नाईक और राज 

     सन 2004 से उद्धव ठाकरे ने कार्यकारी अध्यक्ष के नाते शिवसेना की कमान संभाली। इससे पहले शिवसेना और भाजपा गठबंधन में 1995 से लेकर 1999 तक महाराष्ट्र में सत्ता का उपभोग किया। उद्धव ठाकरे के हाथों में शिवसेना की कमान आने के बाद लगातार ऐसा आभास होता रहा कि शिवसेना लगातार कमजोर होती जा रही है। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व पर कभी पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे, तो कभी उद्धव के ही चचेरे भाई राज ठाकरे ने सवाल खड़े किए। इतना ही नहीं उद्धव और शिवसेना के अन्य नेताओं के बीच विवाद इतने बढ़ गए कि जुलाई 2005 में नारायण राणे को पार्टी से बरखास्त कर दिया गया। शिवसेना से निकाले जाने के तुरंत बाद राणे ने शिवसेना के अपने कट्टर समर्थक विधायकों को अपने साथ लिया और कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस ने राणे को हाथों-हाथ लिया और तुरंत राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बना दिया। 
       उसके बाद 27 नवंबर 2005 को उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई राज ठाकरे ने शिवसेना के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। राज को मनाने-समझाने का असपफल प्रयास किया गया। राज को अपना नेता माननेवाले हजारों शिवसैनिकों ने राज ठाकरे के साथ पार्टी छोड़कर जाने का निर्णय ले लिया। राज के साथ न तो शिवसेना का कोई बड़ा पदाधिकारी गया और न ही विधायक व सांसद। लेकिन राज और राणे के शिवसेना छोड़ने से उद्धव ठाकरे की राजनीतिक क्षमता और कुशलता पर प्रश्न चिन्ह लग गया। 
     2007 में मुंबई महानगर पालिका के चुनाव हुए। उद्धव के नेतृृत्व में शिवसेना ने एक बार फिर जीत हासिल की। वहीं 2009 के विधानसभा चुनाव में जब शिवसेना के विधायकों की संख्या घटकर भाजपा के विधायकों से कम हेा गई, तो एक बार पिफर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व पर सवाल खड़े हो गए। 17 नवंबर 2012 को शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद से शिवसेना की कमान पूरी तरह उद्धव ठाकरे के हाथों में आ गयी और 2014 के लोकसभा चुनाव में 18 सीट जीतकर अक्षम नेतृत्व कही जानेवाली शिवसेना पिफर से सक्षम नेतृत्व के हाथों में सुरक्षित माने जाने लगी। 
      मार्मिक में छपी एक खबर से हुई शिवसेना की शुरूआत शिवसेना की स्थापना 19 जून 1966 को मराठी साप्ताहिक मार्मिक में एक छोटी-सी खबर छापे जाने के बाद हुई। जब शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे ने यह खबर छापी थी। तब उन्होने भी नहीं सोचा था कि मार्मिक में अंदर के पृष्ठ पर छपी किसी खबर का महाराष्ष्ट्र के मराठी मन पर इतना व्यापक असर होगा कि शिवसेना रातो-रात लोकप्रिय हो जाएगी। दक्षिण भारतीयों का अधिकतर सरकारी नौकरियों और बड़े पदों पर कब्जा मराठियों के मन में आक्रोश  पैदा कर चुका था। अन्य राज्यों से आकर मुंबई में नौकरियों पर कब्जा करने का मुद्दा बेरोजगार मराठी युवकों के मन पर छा गया और शिवसेना के भगवा झंडे तले महाराष्ट्र के विकास का स्वप्न मराठी मानुस देखने लगा।
स्थापना के बाद शिवसेना ने ठाणे महानगर पालिका का चुनाव लड़ा और इसमे अपार सफलता मिली। 1971 में शिवसेना ने मुंबई महानगरपालिका पर कब्जा किया और हेमचंद्र गुप्ते पहले शिवसैनिक महापौर बने। जिसके बाद बाला साहेब ठाकरे और उनके कर्मठ साथियों का उत्साह कई गुना बढ़ गया। इसके बाद शिवसेना ने विधानसभा, लोकसभा, मनपा, आदि के कई चुनाव लड़े, लेकिन शिवसेना अपेक्षित सपफलता से दूर ही रही। 


1985 में हुई भाजपा से शिवसेना की युति 

        1985 में भाजपा के नेता प्रमोद महाजन की पहल पर भाजपा का शिवसेना के साथ गठबंधन किया गया। शिवसेना ने भी धीरे-धीरे अपनी प्रांतवादी सोच को बदलकर हिंदुत्व की सोच को अपनाया। यही वजह है कि शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे को  हिंदुहृदय सम्राट कहा जाने लगा। वहीं प्रमोद महाजन भाजपा-शिवसेना युति के शिल्पकार कहलाए। 1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना और भाजपा को बेहतरीन सपफलता मिली। शिवसेना ने 52 और भाजपा ने 42 सीटों पर जीत हासिल की। विधानसभा में तेज-तर्रार माने जानेवाले ओबीसी नेता छगन भुजबल विपक्ष का नेता बनना चाहते थे। शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने भुजबल को यह पद देने की हामी भी भर दी थी। लेकिन अचानक भुजबल की जगह मनोहर जोशी को विपक्ष का नेता बना दिया गया। इससे छगन भुजबल बेहद आहत हुए। दिसंबर 1991 में नागपुर अधिवेशन के दौरान अचानक छगन भुजबल ने शिवसेना से बगावत कर और अपने साथ 17 विधायक लेकर कांग्रेस में शामिल हो गए। यह शिवसेना के लिए सबसे बड़ा झटका था। विधानसभा में शिवसेना की सीटें भाजपा से कम हो गई और ज्यादा सीटों के बल पर विपक्ष के नेता का पद भाजपा के गोपीनाथ मुंडे के पास चला गया।
 शिवसेना-भाजपा गठबंधन में 1995 में पहली बार सबसे बड़ी सपफलता हासिल हुई। शिवसेना-भाजपा ने निर्दलीयों के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई। मनोहर जोशी शिवसेना के पहले और नारायण राणे शिवसेना के दूसरे मुख्यमंत्री बने। 
        शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे अपनी धारदार भाषण शैली के लिए पहचाने जाते रहे। शिवसेना प्रमुख ने पहली स्थापना के बाद मुंबई के शिवाजी पार्क पर दशहरा के दिन रैली की। उसके बाद मुंबई में दशहरा का दिन, दादर का शिवाजी पार्क और बाल ठाकरे एक-दूसरे के  पर्याय बन गए। शिवसेना की यह रैली अपने इतिहास में एक मात्र ऐसी रैली है, जो एक नेता, एक दिन के तौर पर विश्वकीर्तिमान बनाए जानेवाली रैली कही जाती है। अब तक के शिवसेना के इतिहास में सिर्फ दो बार किन्ही कारणों से इस रैली का आयोजन नहीं किया गया और 2 से 3 बार इस रैली का समय रात के बजाय दिन में किया गया था। इन अपवादों के अलावा यह रैली शिवाजी पार्क में अनावरत और अबाध चलती रही। ठाकरे की भाषण शैल्य ठाकरी भाषा के तौर पर प्रचलित हुई।

ठाकरे परिवार ने नहीं लड़ा कोई चुनाव

पार्टी के 48 सालों के इतिहास में शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे और उनका परिवार एकमात्र ऐसा राजनीति परिवार था, जिसने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा और न ही कभी कोई सरकारी पद स्वीकार किया। बालासाहेब ठाकरे को राजनीति में पारस का पत्थर कहा जाने लगा था। उन्होने जिस भी आम आदमी को चहा उस आदमी को नगरसेवक, विधायक, सांसद और मंत्री बना दिया। फिलहाल, बालासाहेब ठाकरे के जाने के बाद उद्धव ठाकरे ने पार्टी की कमान संभाली है। वहीं तीसरी पीढ़ी के आदित्य ठाकरे बालासाहेब ठाकरे के सामने ही युवासेना की कमान संभाल चुके हैं। 


शिवसेना की लोकसभा में स्थिति-
1989 - 1 सीट
1991- 4 सीट
1996- 15 सीट
1998- 6 सीट
1999- 15 सीट
2004- 12 सीट
2009- 11 सीट
2014- 18 सीट

शिवसेना की विधानसभा में स्थिति*- 
1990- 52 सीटें
1995- 73 सीटें
1999- 69 सीटें
2004- 62 सीटें
2009- 45 सीटें
 पार्टी को मान्यता मिलने के बाद से