Friday, March 13, 2015

तू-तू, मैं-मैं और गठबंधन

- सोनम गुप्ता

        शिवसेना ने एक बार फिर अपनी कमान में तीर भरकर बीजेपी पर वार करना शुरू कर दिया। कमल भी धनुष के तार खींचने से पीछे नहीं हट रही। मकसद स्पष्ट है आगामी नगर निगम चुनाव। रिश्ता फिर बिखरेगा। विधानसभा में भी बिखरा था। कभी सीटों के बटवारे को लेकर तो कभी फ़ोन न उठाने को लेकर ये और वे एक-दूसरे से रूठते रहे थे। कई बार तो दिल्ली तुम्हारी महाराष्ट्र हमारा कहकर बंटवारा कर सुलह करने की कोशिश भी की गई। लेकिन फिर ये ने वे को कमलाबाई कहकर पुकारा तो वे भी ये को जलाने के लिए उनके विरोधी से हॉटेल के कमरे में मिलने चले गए।
        अब एक बार फिर 25 साल अटूट, 1 साल टूट-फूट के साथ वाला ये रिश्ता बिखर रहा है। आरोप लगेंगे, बातें होंगी, कोई गुस्सा होगा फिर मनाने का इमोशनल ड्रामा भी। एक-दूसरे के कुछ एकाध छिट-पुट सीक्रेट्स भी ताव में आकर खुलेंगे। कौन किस घोटाले में कितना शामिल, इसके भी संकेत मिलेंगे। फिर तीर कमल पर सधेगा। चुनाव होगा। जनता पशोपेश में फंसेगी। इसको चुने या उसको। ये भी भगवा वो भी हिंदुत्ववादी। ये भी भ्रष्ट, वो भी अपने में मस्त। ये भी मौकापरस्त, वो भी जुगाड़ू।  रैली होंगी, सभाएं होंगी। एक-दूसरे के खिलाफ भाषण होंगे। ये उनके बेटे की ओपन टैरेस पार्टी नहीं होने देंगे, वे उनकी सभा में अड़ंगा डालेंगे। ये उन्हें सरकारी अनुमति नहीं देंगे तो वे उनका बिजली, पानी कटवा देंगे। ये के पास सरकार है तो वे के पास निकाय। ये उन्हें गलत बताएंगे तो वे उन्हें दर्पण दिखाएंगे। ये 'उठा उठा' के नारे लगाएंगे तो वे 'नमो नमो' के।
        चुनाव का माहौल बनेगा। नगर के उबड़-खाबड़ सड़कों पर डामर गिरेगा, गटर साफ़ दिखेगा, सोसायटी के मार्ग का लादीकरण होगा, मानसून के बगैर भी गार्डन खिलेगा। सालों बाद उसमें एक माली दिखेगा। घास काटता, पांच साल से उपेक्षित मुरझाए पौधों को सहलाता, पानी देता उनकी देख-रेख करता। क्षेत्र के मंदिरों में दान-दक्षिणा की पेटी भरने लगेगी, द्वार पर पीतल का नया घंटा लगेगा, मस्जिद के किवाड़ पर नया स्पीकर सजेगा, जगह-जगह कूड़ेदान दिखेंगे। नगर साफ़ और खिला-खिला दिखेगा। सारे कूड़े-कचरे प्रचार में व्यस्त जो रहेंगे!            
         घर-घर उम्मीदवार पहुंचकर वोट मांगेगे। जनता वायदा करेगी। नेता जीत कर मुकरेगा। जनता वोट करते समय मुकरेगी। हिसाब बराबर! लेकिन फिलहाल जनता कन्फ्यूज्ड है। कल सदन में एक-दूसरे को समर्थन देकर ये और वे गलबहियां कर रहे थे। और आज एक-दूसरे का गला काटने की बात कर रहे हैं। चुनाव के बाद और चुनाव के पूर्व ये और वे साथ रहते हैं। लेकिन ठीक चुनाव के वक़्त ये और वे के मतों में भेद होने लगता है। इसलिए इस बार भी दोनों दल अलग-अलग लड़ेंगे। कुछ तो दल बदलकर लड़ेंगे। लड़ना ही तो है। फिर चाहे यहां से लड़ो या वहां से। लड़ने के बाद जीत किसी की भी हो। गठबंधन तो होना ही है। सरकार तो दोनों की ही बननी है। ये तो कुछ उस कंपनी की तरह हुआ जो बाजार तैयार करने के लिए एक ही मार्केट में अपने 2-3 प्रॉडक्ट्स प्रतिद्वंदी के रूप में उतारती है। एक ही कंपनी के 4-4 शैम्पू। अंतर इतना कि एक थोड़ा सौम्य तो दूसरे का मिज़ाज थोड़ा तीव्र। दूधवाला नहीं तो शिकाकाई वाला शैम्पू कोई भी लो। आपको विकल्प मिलेगा,  उन्हें मुनाफा। इससे नहीं तो उससे। क्योंकि हैं तो ये सारे प्रॉडक्ट एक ही थाली के चट्टे-बट्टे।
         खैर तो दोनों अलग-अलग लड़ेंगे। अपनी-अपनी शक्ति पर दम भरेंगे। शक्ति प्रदर्शन होगा। दोनों दोस्तों के बीच कुश्ती होगी। दुश्मनी का ढोंग होगा। जनता कश्मकश में कौन बेहतर। एक को दूसरे से थोड़ा ज्यादा अंक मिलेंगे, लेकिन बहुमत नहीं मिलेगा। फिर ट्रॉफी किसकी हो? जीत किसकी हो? ईनाम की राशि किसके नाम हो? दोनों अंत में गले लगेंगे, एक-दूसरे की प्रशंसा करेंगे। जीत का ताज साझा करेंगे। खेल ख़त्म होगा। जनता ताली बजाएगी। जनता खाली हाथ घर लौट जाएगी। उसी उबड़-खाबड़ सड़कों पर से, उसी मुरझाए बाग के बीच से। अगले पांच साल तक इसी कुश्ती के इन्तजार में। 
जोड़-तोड़ के गठबंधन