Thursday, December 27, 2012

"अभी तो मैं जवान हूं!"



              हाँ, यही नारा होना चाहिए हमारे समाज के सभी भूतपूर्व युवाओं का। 45 वर्षीय अपनी माँ से जब मैंने कंप्यूटर सीखने की बात कही तो वह कहने लगी मेरी उम्र नहीं है यह सब सीखने की। जब भी हम अपने किसी बड़े को कुछ नया बताना चाहते है तब यह जवाब हमे अक्सर सुनने को मिलता है। हमारे समाज में 30 वर्ष के बाद हर महिला और पुरुष अपने आप को बुजुर्ग की केटेगरी की ओर धकेलने लगता है। हमारे शरीर के बूढ़े होने से पहले ही हमारी सोच को, हमारी जिजीविषा को हम बूढ़ा बना देते है। हम अक्सर ईश्वर की पूजा और आराधना में ही अपने बुढ़ापे को बिताना चाहते है। काम न होने पर मंत्रो के जाप में ही समय गुजारना शायद ईश्वर को भी नहीं भाता होगा। उन्होंने हमे यह जीवन जीने के लिए, निरंतर कुछ नया करने के लिए दिया है। जीवन बेहद छोटा होता है। उसमें भी जीवन के हर पड़ाव बचपन, यौवन, परिपक्कव (मैं बुढ़ापे को यहाँ बुढ़ापा न लिखकर जीवन का सबसे परिपक्व पढाव कहना चाहूंगी) सभी का अपना एक महत्त्व होता है। 2012 में 100 साल की जीवन की लम्बी पारी पूरी करनेवाली अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल ने अपने 100वे जन्मदिन पर कहा,"मैं अब भी झूमकर नाचना चाहती हूं। क्योंकि अब भी मैं जवान हूं।" सहगल 50 की उम्र पार करने के बाद भी हर रोज अपना वजन जांचती और जिस दिन भी उन्हें अपने वजन में थोड़ी-सी भी बढ़त दिखती। वह तुरंत अपने खाने पर सही नियंत्रण रखना शुरू कर देती। बहु, पोतोवाली इस महिला को अपने आप को लगातार सुन्दर और सामयिक बनाते देख मुझे अपने युवा होने पर प्रश्न चिन्ह लगता दिखाई देता है। हमारे समाज में बच्चों की शादी होने के बाद, नाती-पोते का मुंह देखने की अभिलाषा रखी जाती है। जब वह भी पूरी हो जाये तो बस अब तो सिर्फ तीर्थ यात्रा करना ही जीवन का अंतिम धेय  बन जाता है। कुछ नया करने, सीखने की बात कहना तो अंधों की नगरी में आइना बेचने जैसा होता है। अगर गलती से कभी किसी खुले दिल के भूतपूर्व युवा ने सोचने की हिम्मत की तो उनके वंश के कर्णधार लोकलज्जा की लम्बी-लम्बी बाते कर उन्हें मंदिर भेज देते है। 
           कई माँ-बाप किसी कारणवश अपनी पढाई पूरी नहीं कर पाते। ऐसे में अगर उनके भीतर अब भी वह इच्छा शक्ति है, तो बेझिझक उन्हें स्कूल, कॉलेज में जाकर अपना नाम दर्ज करवाना चाहिए। मेरे पोस्ट ग्रैजुएशन की क्लास में एक 51 वर्ष के चाचाजी पत्रकारिता की शिक्षा लेने आते है। उनसे पूछने पर कि इस उम्र में आप पत्रकारिता जैसी 24*7वाले कठिन क्षेत्र में क्यों आना चाहते है। उन्होंने कहा,"हमेशा से लिखने का शौक था। पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते मौका नहीं मिला। लेकिन आज जब अपनी अधिकतम जिम्मेदारियां पूरी कर चूका हूं , तो यह समय सिर्फ मेरा है।" आपने अपने बच्चों की इच्छाएं, शौक हमेशा पूरा करने की कोशिश में रहते है। तो ऐसे में अपनी जिंदगी के साथ समझौता क्यों? कुछ भूतपूर्व युवा ऐसे मुद्दों पर कहते है, कि  इस उम्र में पढ़-लिख कर, कुछ नया सीख कर हासिल क्या होगा? यह तो केवल फिजूल खर्ची है। तो उनके सवालों का जवाब मैं अपने जीवन की एक सच्ची घटना से देना चाहूंगी। मैं कुछ वर्ष पहले एक आंटीजी से मिली थी। वह 45 वर्ष की उम्र में अपने शौक के चलते कंप्यूटर सीख रही थी। कोर्स ख़त्म होने के कुछ महीनो बाद उनके पति की तबियत बिगड़ने-से उनकी आर्थिक परिस्थिति डगमगा गयी। बच्चों ने अपने बच्चों और परिवार की स्तिथि का हवाला देकर पहले ही अपने हाथ खड़े कर दिए थे। ऐसे में उन्होंने अपने कंप्यूटर के ज्ञान को समय के साथ थोडा और विकसित किया और उस समय एक क्लासेस में कंप्यूटर सिखाने का काम शुरू किया। आज 2 सालों  के भीतर न केवल उनके घर की आर्थिक स्थिति में सुधार आया बल्कि उन्होंने अपना एक छोटा-सा क्लासेस भी खोल लिया है। इस लिए कभी भी कोई भी ज्ञान व्यर्थ नहीं जाता। हो सकता है कि वह आपको धन अर्जित करने में सहायता न करे लेकिन जीवन में किसी न किसी रूप में वह आपका सहायक जरुर बनेगा।  
         कुछ भी सीखने की कोई उम्र नहीं होती। जब मौका मिले तब कुछ नया करते रहना चाहिए। बचपन से मन में कुछ न कुछ ऐसी इच्छा होती है, ऐसी अभिलाषाएं और शौक होते है जिन्हें पूरा करने का समय नहीं मिलता या मौका नहीं मिल पाता। ऐसे में बढती उम्र में भी अपने आप को जवां रखने का सबसे अच्छा तरीका है। अपने शौक को, अपने अधूरे सपनो को पूरा करने की कोशिश करना। अपनी जिघयासों को हमे कभी मरने नहीं देना चाहिए। अपने नाती-पोतो को पारिवारिक संस्कार देने के साथ-साथ उनसे आज-कल के दौर की नयी बातें सीखने  में हर्ज़ ही क्या है। हर समय अपने आप को अपडेट करते रहना आपके जीवन में जोश और उत्साह भरता है। आप अपने युवा पीढ़ी के लिए न केवल सम्माननीय बन कर रह जाते है। बल्कि साथ ही वे आपको अपना दोस्त बनाने से भी नहीं झिझकते। देर अब भी नहीं हुई, उठिए और अपने पुराने दबे सपनो और ख्वाइशो को बंद पिटारे से खोज निकालिए। खुल कर अपने सपनो को बेझिझक जीने की हिम्मत जुटाइए। कभी सलवार कमीज पहनने  की अभिलाषा रही हो, तो अभी तुरंत जाकर दर्जी को अपना नाप देकर आईये। रंग-बिरंगे शर्ट पहनकर, अपने जन्मदिन पर एक दमदार पार्टी कीजिये। उन सफ़ेद बालों में अगर चेहरे की चमक छिप  गयी हो तो अब भी के अभी बाजार जा कर रंग डालिए अपने आप को नयी उमंगो से। शादी के बाद हनीमून पर जाने की इच्छा थी। लेकिन घर का बजट इजाजत नहीं दे रहा था। तो अब अपनी जमा-पूंजी को नाती-पोतो को सौपने की बजाय अपने लिए कुल्लू-मनाली की टिकिट बुक करवाइए। डांस सीखने की इच्छा बचपन से थी लेकिन मौका ही नहीं मिला। तो अब कहा देर हुई है। हो सकता है कमर उतनी न लचके, लेकिन जितने भी ठुमके लगेंगे वह आपके आपके भीतर के बच्चे को उतना ही जागृत कर देंगे। यह समय आपका है। भूतपूर्व युवा से आगे निकल कर वर्तमान युग के युवा को  पछाड़ दीजिए। जबतक आखिरी सास है तब तक इसे पूरे जोश और ख़ुशी से जीने का पूरा हक़ आपको है। और अगर कोई आपसे यह कहे की बुढ़ापे में इसे जवानी चड़ी है तो पलट कर जरुर कहना," बूढ़ा होगा तेरा बाप!" 
अगर आपने अपने भीतर के बच्चे को अब भी जीवंत रखा है, तो उसकी एक झलक हमारे साथ लिख कर या अपनी तस्वीरों के सहारे जरुर बाटें .
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                                                                                                                                   -सोनम प्र. गुप्ता