Wednesday, July 17, 2013

शरद जोशी से एक मुलाकात

फेमिना के जुलाई के अंक में प्रकाशित मेरी पहली पुस्तक समीक्षा...


पत्रकार व व्यंग्यकार डॉ. वागीश सारस्वत की समीक्षा कृति   "व्यंग्यर्षि शरद जोशी"  शरद जी के लेखन से लेकर उनके जीवन के विभन्न पहलुओं को  बेहद रोचकता से उजागर करती है। पुस्तक में लेखक ने शरद जी पर टिपण्णी करते हुए बेहद सटीक और अद्भुत रूपक उद्धरित किए है। पुस्तक में शब्दों का  चुनाव लेखक के विस्तृत ज्ञान को दर्शाता है। वहीं लेखक के कई टिप्पणियों की पुनरावृत्ति निराश करती है। सफल व्यंग्यकार होने के नाते लेखक ने बीच-बीच में अपनी बात कहने के  लिए व्यंग्य का इस्तेमाल बखूबी किया है। जो पाठक को 287 पृष्ठों की यह पुस्तक पढ़ते हुए  ऊबने से बचाता है। लेखक ने पुस्तक को अध्यायों में विभाजित किया है। जिसमें 
'व्यंग्य विधासंदर्भ और परंपरापहला अध्याय है। इस पाठ में वागीश ने भारतीय काव्यशास्त्र में व्यंग्य के स्वरुप से लेकर आधुनिक समय के व्यंग्य की यात्रा का संक्षिप्त विवरण दिया है। यहां व्यंग्य के विधा अथवा शैली होने के विभ्रांति को भी लेखक ने स्पष्ट करने की कोशिश की है। दूसरे व पुस्तक के सबसे रोचक पाठ 'शरद जोशीव्यक्तित्व विभासमें शरद जी के व्यक्तित्त्व की चर्चा के साथ-साथ उनके जीवन और जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण पर भी चर्चा की है। शरदजी के निजी जीवन को साहित्य से जोड़ते हुए लेखक लिखते है, 'शरद जोशी का  जन्म भले ही भरी गर्मियों (21 मईमें हुआ लेकिन हिंदी साहित्य में शरद जोशी शीतल और मन को मोहने वाली बयार बनकर सबको हर्षित करते है।लेखक की ऐसी कई  टिप्पणियां रेखांकित करने योग्य है। जो लेखक के गहन अध्ययन और शरद जी के प्रति समर्पण  भावनाको दर्शाता है। पुस्तक का तीसरा अध्याय 'शरद जोशी की व्यंग्य रचनाएंमें शरद जी के विभन्न विषयों पर लिखे गए निबंधोंनाटकोंउपन्यासोंकहानीलेखों और उनके स्तंभ लेखन पर  समीक्षा लिखते हुए वागीश ने हर क्षेत्र का बेहद प्रमाणिकता के साथ आकलन किया है। शरद  जोशी समाज की विसंगतियों और विरूपताओं को व्यंग्यात्मक रूप में पाठक के सामने परोसते  थे। व्यंग्य को जिंदादिली मानते हुए शरदजी कहते है, "व्यंग्य वह सेंस ऑफ ह्यूमर है जो अन्यायअत्याचार और निराशा के विरुद्ध होने से व्यंग्य में अभिव्यक्त होता है।इसके कई उदारहण वागीश ने इस पाठ में सफलतापूर्वक उजागर किए है। 
चौथे अध्याय को 'शरद जोशी के व्यंग्य प्रकारका नाम दिया गया है। शरद जोशी को व्यंग्य का स्कूल कहा जाता था। ऐसे में इस पुस्तक में शरद जोशी के व्यंग्य प्रकार का पाठ  देकर वागीश सारस्वत ने उपर्युक्त कथन को कुशलता से साबित किया है। इस पाठ में लेखक ने शरद जोशी के व्यंग्य साहित्य को प्रकारों में वर्गीकृत किया है। हर प्रकार के बारे में उनकी रचनाओं की समीक्षा की गयी है। यह पुस्तक अकादमिक रूप से अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।  केवल व्यंग्य लेखन के लिए बल्कि बीच-बीच में लेखक के अपने मत इस पुस्तक  को युवा हिंदी लेखकों के लिए बेहद सहायक बनाती है। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति  होगी कि यह पुस्तक हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों के लिए संग्रहणीय है। पुस्तक के अंतिम भाग में वागीश ने शरदजी के अनूठे व्यंग्य लेखन शैलीशब्द चयन और प्रतीकों व बिम्बों के संदर्भ में बेहद बारीकी से समीक्षा की है। जिसे उन्होंने ‘शरद जोशी के व्यंग्य सृजन का शैल्पिक स्वरुप’ नाम दिया है। भारत भवन को लेकर आईएस ऑफिसर और कवि अशोक वाजपेयी के साथ शरद जोशी का विवाद मृत्यु पर्यंत रहा। वागीश सारस्वत ने इस पुस्तक में इस विवाद का जिक्र तो किया हैकिंतु सिर्फ शरद जोशी का दृष्टिकोण ही रखा गया। पूरी पुस्तक में कहीं भी अशोक वाजपेई का पक्ष जानने की कोशिश नहीं की गयी। पठनीयता की दृष्टि से शरद जी के  व्यक्त्तिव विभास का पाठ अगर पहला होता तो ज्यादा आकर्षित करता। व्यंग्य विधा का पहला पाठ पाठकों को पढने से हतोत्साहित कर सकता है। कवर पर प्रकाशक ने शरद जोशी का कोई और आकर्षक फोटो लगाया होता तो ज्यादा बेहतर होता।
 पुस्तक को पूरा पढने के बाद ऐसा लगता है कि वागीश सारस्वत पर शरद जोशी के व्यंग्य लेखन का जादुई प्रभाव कुछ इस कदर हावी रहा है कि उन्हे शरद जोशी के नकारात्मक पहलू भी गुण नजर आते रहे है। हिंदी साहित्य के आलोचक भलीभाति जानते है कि शरद जोशी अपने लेखन के माध्यम से दूसरों के साहित्य पर कटाक्ष करते थे और मखौल उड़ाते थे। परंतु अपनी कोई आलोचना उन्हें कतई बर्दास्त नहीं होती थी। कुल मिलाकर वागीश की यह समीक्षा कृति शरद जोशी को व्यंग्य का शिखर पुरुष साबित करने के लिए श्रेष्ठ कृति है। हर पाठ के  अंत में संदर्भ की लंबी सूची लेखक के तफसीली अध्ययन और कठिन परिश्रम का परिचायक है।अंततः पाठक ने अगर शरद जी को कभी नहीं भी पढ़ा हो तो यह पुस्तक   पढ़ने पर ऐसा लगता है मानो शरदजी के लेखन से हम पूरी तरह से वाकिफ़ हो गए है। 
-सोनम प्रगुप्ता

पुस्तक की कवर फोटो