Wednesday, March 5, 2014

वोट के बाजार में नेता ब्रांड के फुटकर व्यापारी


-         सोनम गुप्ता


बिक रहे हैं कुछ लोग यहां। जहां पहले बिकते थे केवल टोपी, कुर्ता और कलम। अब बिकने लगे हैं वहां उन टोपियों के नीचे खोपड़ीयां। झक्क सफेद कुर्तों के साथ एक हृष्ट-पुष्ट शरीर। कलम थामें लाल स्याही से हस्ताक्षर करनेवाले हाथ। पहले जिस रेल्वे स्टेशन पर अपना पेट भरने के लिए फुटकर बेचनेवाला 10 रूपए से लेकर 100 रूपये तक की वस्तुएं बेचता था। शर्ट ले लो, सेंट ले लो, केला, अंगूर, संतरा सब कुछ प्रतिबंधित प्लास्टिक की पतली झिल्लीयों में देता था। आज वहीं टाय लगाए, टिप-टॉप फार्मलस् पहने लड़के-लड़कियां कागज और कलम लिए बेच रहे हैं। जी नहीं, कागज और कलम नहीं बेच रहे। वे तो नेताजी को बेच रहे हैं।
 यहां ये देखकर बहुत अच्छा लगा कि अब देश की राजनीति में युवा पीढी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है। फिर चाहे वह बात चुनाव लड़ने की हो या मतदान करने की। देश के युवाओं के इसी रूझान को देखते हुए सभी पार्टियों ने अपने-अपने पार्टी में नए चेहरे, युवा चेहरे, युवा मोर्चा, युवा सेना सबकुछ युवामय कर दिया है। जब पापा को अपने बच्चे को पायलट बनाना होता है, तो बचपन में ही वह उसे खिलौनी की जहाज उड़ाने के लिए दे देता है। यहां भी हर पार्टी के अध्यक्ष ने अपने-अपने सयाने हो गए बेटों को विभिन्न प्रकार के युवा मोर्चो का अध्यक्ष बना दिया है। देश के स्वतंत्र आसमान में अपना नीजि हैलीपैड बेधड़क उड़ाने के लिए अभी से तैयार करना जरूरी है, ना। 
खैर, रेल्वे स्टेशन पर हमारे देश के कुछ आम युवा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों को जनता की बाजार में बेचने का काम कर रहे थे। आइए, आइए फला नेता को प्रधानमंत्री बनाने के लिए हमारी दुकान पर अपना नाम, नंबर लिखवा जाइए। अपने बेशकीमती वोट को हमारे नेताजी के नाम पर बली चढ़ा आइए। अरे हमारे नेताजी फलां नेता से ज्यादा युवा हैं। तो क्या हुआ अगर उनके सारे बाल पक गए हैं। उम्र 50 पार कर चुकी है। सामनेवाले विरोधी भला कौन-से 22 के हैं। हमारे नेताजी बेहद नई सोचवाले, लेटेस्ट टेकनालॉजी का इस्तेमाल करनेवाले हैं। फिर चाहे बात दंगे करवाने की हो या कोई घोटाला छिपाने की हो। अरे...अरे जरा एक मिनट तो यहां देख लो। भई, हमारे नेताजी की दुकान पर आ जाओ। बहुत ही किफायती और टिकाऊ माल है। 5 साल से ज्यादा का वादा है। एक बार वोट दोगे, तो दूजी बार तो कुर्सी हम छोड़ेंगे ही नहीं। आप तो बस खरीद ही लो। बिकाऊ नहीं है हमारे नेताजी। लेकिन हां, दाम तो लगेगा ही। मंदिर में भगवान को भी जब प्रार्थना की मंजूरी के लिए रिश्वत देनी पड़ती है, तो हमारी क्या औकात।
एक सूट-बूटवाले फुटकर व्यापरी ने बताया कि वो किसी विदेशी कंपनी में कार्यरत है और मुफ्त में देश सेवा के लिए अपने इस प्रिय नेता का प्रचार कर रहा है। क्योंकि उसके नेता का नारा ही मुझे लाओ देश बचाओ हैं।  दूसरी ओर से वहां का पुराना फुटकर व्यापारी अपना झोला-झंडा ऊठाकर देश बचाओवालों पर फूट पड़ा। वो जिन नेताजी को बेचने आया था। वे एकदम युवा, इतने की कुछ तो बच्चा भी समझ लेते। गरीबों के रहनुमा, मां के लाडले। अब यहां से भी जोर-शोर से ग्राहकों को पटाने की चिल्लाहट मचने लगी। जनता कन्फूयज हो गई किस को खरीदें। देानों ही झक्क सफेद कुर्ताधारी, युवा, गरीबों की और गरीबी की बात करनेवाले, किसानों का लोहा मानने और मांगनेवाले। यहां मामला गरमाने लगा।
        एक नेता बेचनेवाला दूसरे पर चढ़ने लगा। वह अपने माल को बेहतरीन और टिकाऊ बताता, तो दूसरा अपनेवाले को मार्केट का युवा व सबसे पुराना बै्रंड बताता। मेरा ले। नहीं, नहीं मेरावाला। अरे, उसने घोटाले किए हैं। अरे उसने तो जान लिए हैं। अरे हमारे नेताजी तो युवाराज हैं। वो तो यमराज हैं। अरे, उसका इतिहास कमजोर है। अरे, उसे तो इतिहास पता ही नहीं। अरे, इतिहास छोड़ो भूगोल देखो।  इतने में तीसरा केवल गांधी टोपी पहने अपने नेता का प्रचार करने पहुंचता है। बाकि दोनों को ढोंगी बताकर खुद का सिक्का जमाने लगता हैं। 1 से 3 का शोर अब हाथा-पाई में बदल जाता है। इस हल्ला हो में आम आदमी पगला जाता है। सोचता है, इस दुकान से किसी को भी खरीदू। अंत में तो ये हमें ही बेच खाएंगे।