Saturday, September 29, 2012

आज वे बहिस्कृत किये देते है...

आज पुरष्कृत हूं,
कल शायद बहिस्कृत रहूंगी,
आज वो सम्मान दिए देते है,
कहो तो चरणों में पुष्माला धर देंगे,
कल जब इनकी सोच के विपरीत चलूंगी,
तो वही कल फासी चढवा देंगे,
उस प्यार और दुलार को,
सीने से मिटा देंगे,
जो उनकी मनसा है,
वही शब्द कहलवाना वे चाहते है,
मेरी सोच, मेरी समझ को निर्जीव बनाना चाहते है,
सही कुछ न कहने देंगे,
मंच पर बुलाकर,
अपनी ही तारीफे सुनेंगे,
लेकिन जब मेरे अन्दर का लेखक,
उनकी कही को टालेगा,
अपनी सोच के घोड़े दौड़ाएगा,
उसी पल वे मंच से मुझे धकेल देंगे,
मेरी लिखित पुस्तकों को जला,
समाजविरोधी घोषित कर देंगे,
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नयी बहस छेड़,
प्रश्न चिन्ह लगा देंगे,
कर सकते है वह यह सब,
यह मंच उन्ही के पैसो का है,
यह श्रोता भी ख़रीदे है उन्होंने,
खरीदना चाहते थे वे मुझे भी,
जब इंकार किया मैंने,
मेरा नाम तक वह बिसर गए,
लेकर आये थे होंडा सिटी में,
लौटना पड़ा सरकारी बस में,
पहेल तो सम्मान दिया,
आज वे बहिस्कृत किये देते है...