Friday, September 19, 2014

जरुरी है औरत का उखड़ना


एक लंबी कविता के एडिटिंग के दौरान उसमें से कटकर निकले हुए कुछ अवशेषों से ये कविता बनी है। जिसे आपके साथ सांझा कर रही हूँ।

- सोनम गुप्ता


एक लड़की कर सकती है शादी से इंकार
सजा सकती है सपने
भर सकती है ऊंची उड़ान
हंस सकती है खुलकर
कर सकती है वह सबकुछ
जो हक है उसका
लेकिन
पापा, चाचा, मामा, ताई, मम्मी और पड़ोसी सब
नहीं भूलने देंगे उसे
कि
वह जन्मी है संस्कारों के देश में
पंडितों और पुजारियों के प्रदेश में
जहां औरत इंसान नहीं
केवल सामान है
घर का सम्मान है
मान-मर्यादा और अपमान है
उसे दबना है
चुप रहना है
सपनों को मार कर भी खुश रहना है। 

लड़कीनुमा पोधे का
पनपना जरुरी है
उखड़ने के बाद भी जरुरी है
उसका फलना फूलना
ताकि फसलें जिंदा रहें
ताकि नस्लें जिंदा रहें
फिर चाहे गल जाए एक लड़की का शरीर
दरक जाए दिल
पर नस्ल जिंदा रहनी चाहिए। 

एक अंकुर को पैदा करने के लिए
गलना पड़ता है बीज को
सहना पड़ता है दर्द जननी को।

फ्रीडा काहलो की एक पेंटिंग- साभार: अमिताभ श्रीवास्तव