Monday, January 30, 2012

निंदियाँरानी

निंदियाँरानी कही दूर भाग गयी है मुझसे ,
पलकों से उड़कर कहीं छिप गयी झट से.
             नीले अम्बर में है जा मिली,
             सूरज की नयी किरण तक,
             सपनों की दुनियां राह भूल गयी,
             नहीं है आज पहुंची मंजिल पर,
निंदियाँरानी कही दूर भाग गयी है मुझसे ,
पलकों से उड़कर कहीं छिप गयी झट से.
            कब से राह ताक रही हूँ मैं,
            अंधियारे में भी जाग रही हूँ मैं,
            मां है थक गयी लोरियां गा कर,
           फिर भी अँखियाँ मूंद रही हूँ मैं,
निंदियाँरानी कही दूर भाग गयी है मुझसे  ,
पलकों से उड़कर कहीं छिप गयी झट से.
              जाने कौन-सी गलती हमसे हो गयी,
             सपनों की दुनिया जाने कहां खो गयी,
             कहानी सुन-सुनकर अब मैं भी ऊब रही,
             आज बिन पलके झपके भोर हो गयी,
निंदियाँरानी कही दूर भाग गयी है मुझसे,
पलकों से उड़कर कहीं छिप गयी झट से.
             इक जम्भ्वाई भी आज नहीं छूटी,
             कोई अंगड़ाई आज नहीं है टूटी,
             यह रजनी जाने क्यों चिंता में है डूबी,
             आँखों की है जैसे किसमत फूटी.