Monday, April 7, 2014

मामा बोला ऑल द बेस्ट!


- सोनम गुप्ता 


        सुबह-सुबह ट्रेन 15 मिनट लेट चल रही थी। देरी की वजह से ट्रेन में भीड़ देखने लायक हो गयी थी। समय से पहुंचना था इसलिए कुछ भी कर, कैसे भी उस ट्रेन में चढ़ना बहुत जरुरी था। मैं डरते हुए, सहमते हुए, रेल के नियमों का उल्लंघन करते हुए बोगी के फूट ब्रीज पर सवार हो गयी। वाशी पहुंचने तक मेरी स्थिति में कोई सुधार नहीं आया। वाशी ब्रीज आते ही कुछ लोगों ने मुझपर तरस खाकर मुझे बोगी के अंदर यानि खुली हवा से लोगों के पसीनों से गंधित हवा के बीच प्रवेश करने का मौका दिया। मैं जैसे-तैसे एक-एक स्टेशन में खुद को संभालती हुई बोगी के अंदर बैठने की जगह तक पहुंच गयी।  कुर्ला आया और महिला बोगी ने कुछ सास ली। वडाला आने तक बैठने की आधी जगह तो मिल ही गयी। मैंने हाथ में मुड़े हुए किताब को खोला और रिवीजन करना शुरु कर दिया।

      सीएसटी में उतरते ही लगभग दौड़ते हुए टैक्सी स्टैंड तक पहुंची। और टैक्सी को अपने गंतव्य स्थान तक जाने के लिए रुकाने का असफल प्रयास करने लगी। कुछ 3-4 मिनट बीत गए लेकिन कोई टैक्सी केसी कॉलेज जाने के लिए तैयार ही नहीं हुई। मुझे भी कोई बहुत ज्यादा देरी नहीं हो रही थी।  बस समय से पूर्व पहुंचने की इच्छा थी। सुबह-सुबह टैक्सीवालों पर बड़बड़ाने का मन भी नहीं था इसलिए शांति से टैक्सी ढूंढने का कार्य मैं बेहद तल्लीनता के साथ कर रही थी।  तब ही वहां करीब खड़े मामा यानि ट्रैफिक हवलदार ने मुझसे पूछा, 'एग्जाम आहे का?' मैंने आश्चर्य व संदिग्ता दोनों के भाव एक साथ चेहरे पर लाकर जवाब दिया, 'हो।' मेरे हाथ में फ़िलहाल कोई किताब नहीं थी। ट्रेन में ही वह बुक बैग में जा चुकी थी। ऐसे में मामा को कैसे पता लगा कि मेरी परीक्षा है। इतना  मैं सोच ही पायी थी कि उन्होंने मुझसे कहा, "इकडेच थांब। कुठे जाउ नकोस।" इतना कहकर वो आगे चले गए। मैं, उन्हें वहीं खड़ी होकर देखती रही। उन्होंने सड़क के उस पार जाकर एक टैक्सीवाले को हाथ दिखाकर बुलाया। वो टैक्सीवाला अनमना-सा मुंह बनाकर उनके पास अपनी टैक्सी ले आया। उन्होंने टैक्सी को मेरी ओर लाने का इशारा किया और खुद भी कुछ हद तक दौड़ते हुए आए। मुझे टैक्सी में बैठने के लिए कहा और टैक्सीवाले को हिदायत दी कि "इसे केसी कॉलेज के एकदम गेट के पास छोड़ना। इसका एग्जाम है।" टैक्सीवाले ने एकदम अरुचिवाला भाव बनाकर पतले-दुबले मामा को पूरी तरह नजरअंदाज़ करने के लहजे में गियर लगाया।
इतने में आंखों पर चश्मा लागाये मामा ने मुझे टैक्सी में बैठा देखकर इत्मीनान जताते हुए संकोच भरी आवाज़ में कहा, "चांगला कर। आल द बेस्ट।"
       मैं, कुछ सोच या कह पाती उससे पहले टैक्सीवाले ने उदास-सा चेहरा बनाकर एक्सीलरेटर  को दबा दिया। मेरे मुंह से केवल एक ही शब्द मुस्कान के साथ फूटी, "थैंक यू।"