Friday, September 20, 2013

हेयर सिरम और गांठ

नहीं सुलझ रही,
जुल्फों की उलझने,
लगा लिया
हेयर सिरम, 
गांठे,
फिर भी,
अर्झी की अर्झी,
टूट गयी,
कुछ कमजोर कड़ियां,
तो कुछ जड़ से उखड गयी,
कंघे के साथ घर्षण में,
कुछ संभली और कुछ चल बसी,
उलझी हुई गुत्थियों में,
कट्टर धागे ,
कुछ आधे हो गए,
तो कुछ की उलझने बढ़ गयी,
सिरम से,
किनारा करते -करते,
गिरते-पड़ते,
संभलते-बचते,
कुछ सूखी-भूखी रह गयी,
तो कुछ गीली हो,
जंजीरों को तोड़,
अलग हो गयी ...

- सोनम गुप्ता 


Sunday, September 15, 2013

हवा में लटकते कुछ सवाल

कुछ सवाल ऐसे होते है जिनके जवाब ना दिए जाए तो बेहतर होगा। वो अनुत्तरित ही अच्छे है। और अगर आप ताव में आकर उनका जवाब देने की कोशिश करें तब भी कुछ नहीं हो सकता। क्योंकि वो सवाल सवाल बने रहने के लिए ही जन्मे है। उनका जवाब नहीं होता। वे सवाल बनकर जन्म लेते है और आजीवन सवाल ही बने रहते हैं। उनका बचपन, जवानी, बुढ़ापा उम्र के सारे पड़ाव सवाल बनकर ही गुजर जाते हैं। उनमें जवाब बनने की ना हिम्मत होती है और ना ही जुनून। उनको पूछते ही वो हवा हो जाते हैं। वो हवा में लटके सवाल होते है। ऐसे हवा में यहां-वहां लटके सवाल संसद में खूब देखने को मिलते हैं। वहां तो लोग अपना सिर खूब बचा- बचाकर चलते हैं।  न जाने कब कौन-सा सवाल उनके सिर से आ टकराए। कुछ सवाल लटके-लटके ढीले हो जाते है और थोडा नीचे आ जाते हैं। तब वो सिर की बजाय आंखनाक, मुंह, गर्दन, छाती, आदि-आदि जगह पर आकर लड़ते हैं। ऐसा नहीं कि सिर्फ लंबे समय से लटके सवाल ही सिर के बजाय कहीं और लड़े। कई लोगों की ऊंचाई ज्यादा होने से सवाल यहां-वहां आकर उनसे भिड़ जाते हैं। 
           इनमें भी सबसे मजे में वो लोग होते है जिनका कद छोटा होता है। वे बेबाक होकर पूरे भवन में सवालों को मुंह-चिढ़ाते हुए यहां-वहां फिरते रहते हैं। लेकिन हर कुत्ते का दिन होता है। नहीं, मैंने उनको कुत्ता नहीं कहा भाई! आप भी न मेरी बातों में अपनी कल्पना के पुल बनाने लगते हैं। मेरा मतलब है, कभी ख़ुशी पलड़े में होती है, तो कभी गम। कुछ सवाल इतने नीचे लटके होते हैं। इतने व्यापक होते हैं, कि उनसे क्या छोटे, क्या मध्यम और क्या बड़े कदवाला सब टकराते हैं। और ऐसा टकराते हैं कि उनके सिरो पर रसगुल्ले निकल आते हैं। नाक पर चोट लग जाती है। आंखे चौंधिया जाती हैं।  गर्दन तंग हो जाते हैं। कभी-कभी तो सवालों की गंभीरता के चलते वे अस्पताल तक पहुंच जाते हैं। सवाल खुश होता है, अपनी मजबूती दिखाकर। लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा ये सवाल, सवाल बने रहने के लिए जन्मे हैं। इसलिए घंटो हंगामे के बाद भी ये जवाब नहीं बन पाते। मूर्ख सवाल समझता है कि उसके बल से, उसका जवाब ढूढने की चिंता में सांसद महोदय अस्पताल पहुंचे। लेकिन सांसद महोदय तो सवाल को सवाल बने रहने देने के लिए वहां से चलते बने थे।  
         लोकतंत्र में सवाल का ऊठना और ऊठाना उसे सशक्त बनाने के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है। हम भी एक लोकतांत्रिक देश हैं! ये कोई सवाल नहीं है। खैरहमारे पास भी कई सवाल है। जो ऊठते और ऊठाए जाते हैं। जो यहां-वहां हर जगह हवा में लटके हैं। इन लटके हुए सवालों के भी दो मुख्य प्रकार होते है। उनकी महत्ता, आवश्यकता, संपन्नता, सामयिकता, लाभ-हानिपूछे जानेवाले की जेब, कद, ओहदा, इत्यादि के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है।  जैसे: - रामलखन चाचा कब अपनी फसल को ठीक दाम पर बेंच पाएंगे?, कब वो बिचोलियों से बच पाएंगे?, सत्तन की पत्नी कबतक सेठो को खुश करके अपने पति की मजदूरी बचाए रखेगी? सीमा आंटी कबतक बिना प्याज, तेल के सब्जी बनाएगीलल्ली, पप्पू, डब्बू, शब्बो कब स्कूल जाएंगे? और अगर चले गए तो वो जिंदा वापस आएंगे या नहीं? वगैरह, वगैरह।  ये आम आदमी के सवाल हैं। बेहद सस्ते और निहायती व्यर्थ सवाल। इनका जवाब देना कोई जरुरी है, क्या! ये तो सवाल ही अच्छे लगते हैं। ये केवल सवाल ही बने रहेंगे उनका कोई जवाब कभी नहीं मिलेगा इसका मुझे क्या सारे देशवासियों को शर्तिया विश्वास है।  
           हाँ, सवाल की गरिमा बढ़ानेवाले सवाल जैसे सवाल तो ये है कि नमो प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं? मैडम के बेटे नमो को हरा पाएंगे या नहीं? आडवाणीजी नमो के नाम से खुश है या नहीं? अगर नहीं है, तो उनको मनाने की योजना बनी या नहीं? मैडम के बेटे की शादी होगी या नहीं? और होगी तो कब, किससे, कहां और कैसे होगी?,इत्यादि ऐसे कई देश के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण और अति संवेदनशील सवाल यहां-वहां मीडिया के कैमरों और पन्नो के बीच लटके हैं। दोनों तरह के सवालों में केवल एक ही समानता है, कि दोनों ही जवाब रहित हैं।  ये सवाल बेजवाब है या कह सकते है लाजवाब है। ऐसे सवालों से बचा भी नहीं जा सकता और ना ही लड़ा जा सकता है। झूठे जवाब आत्मसम्मान को ठेस पहुचाएंगे और सच्चे जवाब सवाल किए जानेवाले लोग नहीं पचा पाएंगे। बड़ी दुविधा है। बहुत चिंतक स्थिति है। सवाल पर सवाल, सवाल पर सवाल। मगर सारे सवाल बिना जवाब।

  -      सोनम गुप्ता 

दबंग दुनिया में प्रकाशित लेख का कट-आउट (15/09/13)