Tuesday, October 7, 2014

महिला उम्मीदवारों को टिकिट देने से कतराती हैं राजनीतिक पार्टियां

महाराष्ट्र की 288 सीटों पर 5 बड़ी पार्टियों की केवल 78 महिला उम्मीदवार

  • कांग्रेस ने सबसे ज्यादा महिला उम्मीदवारों को टिकट बांटा
  • महिला प्रत्याशी को टिकट देने में मनसे निकली सबसे फिसड्डी
  • मुंबई से शिवसेना की एक भी महिला उम्मीदवार नहीं


   सोनम गुप्ता

महाराष्ट्र देश का इकलौता ऐसा राज्य है, जहां स्थानीय निकायों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। यह वही राज्य है, जहां से विधानसभा और लोकसभा में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की आवाज तेजी से बुलंद हो रही है। ऐसे में इसी महाराष्ट्र से उम्मीद रहती है कि यह राजनीति में महिलाओं को प्रोत्साहित करने में अग्रणी राज्य होगा। लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में राज्य की बड़ी पांच राजनीतिक पार्टियों के कुल महिला उम्मीदवारों को जोड़कर भी 33 प्रतिशत महिलाओं को उम्मीदवारी नहीं मिल पायी है।
  कांग्रेस, राकांपा, भाजपा, शिवसेना और मनसे इन पांचों पार्टियों के यदि कुल महिला प्रत्याशियों के आकड़ों पर नजर डाला जाए तो ये केवल 27 प्रतिशत होगा। वहीं निर्दलीय रूप से व अन्य छोटी पार्टियों से लड़ रही महिला उम्मीदवारों को भी यदि इस आकड़े में जोड़ दिया जाए तब भी यह आकड़ा कुल उम्मीदवारों के एक तिहाई हिस्से से कम ही है।
  महाराष्ट्र में महिला मतदाताओं का अनुपात 47.02 प्रतिशत है। ऐसे में उम्मीद यही होती है कि इस आधी आबादी के नेतृत्व के लिए कम-से-कम उनके तबके के 40 प्रतिशत उम्मीदवार तो मैदान में ऊतरें। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान भी सभी पार्टियां महिला उम्मीदवारों के प्रति उदासीन रहीं, तो वही महिला उम्मीदवारों के प्रति निराशाजनक रवैय्या विधानसभा चुनाव में देखने को मिला है।
    महाराष्ट्र में महिला मतदाताओं की संख्या 3 करोड़ 71 लाख है। लेकिन उनकी आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए चुनावी मैदान में पांच बड़ी पार्टियों द्वारा ऊतारी गई उम्मीदवारों की संख्या मात्र 79 है। कांग्रेस 25 महिलाओं को उम्मीदवारी देकर सबसे ज्यादा महिला उम्मीदवारों को टिकट देनेवाली पार्टी बन गई है। तो वहीं भाजपा ने 20 सीटों पर तो वहीं राकांपा ने 17 सीटों पर महिला उम्मीदवार ऊतारे हैं। वहीं शिवसेना ने केवल 11 सीटों पर महिला उम्मीदवार को दावेदारी सौंपी है। इन पांचों में से मनसे ने केवल 5 महिला उम्मीदवारों को टिकट देकर सबसे निचले पायदान पर है।
      उल्लेखनीय है कि ज्यादातर पार्टियों के सीट आवंटन पर गौर करेंगे, तो यह साफ तौर पर दिखाई देता है कि पार्टियों ने ज्यादातर मजबूरी में आकर ही महिला उम्मीदवार को टिकट दिया है। ज्यादातर इनमें वह सीटें शामिल हैं, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। फिर चाहे वह धारावी विधानसभा सीट हो या श्रीरामपुर या फिर कैज जैसी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें।

1 प्रतिशत भी नहीं है मुंबई से महिला उम्मीदवार

मुंबई की 36 विधानसभा सीटों से कांग्रेस, भाजपा, शिवसेना, राकांपा और मनसे के 180 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। जिनमे से केवल 16 उम्मीदवार महिलाएं हैं। यानि कुल उम्मीदवारों के एक प्रतिशत भी महिला प्रत्याशियों को दावेदारी नहीं मिल पायी है।
     भाजपा के 20 महिला उम्मीदवारों में से 6 सीट तो मुंबई की ही हैं। दहिसर, जोगेश्वरी पूर्व, गोरेगांव, वर्सोवा, धारावी और शिवड़ी विधानसभा सीट से भाजपा ने महिला प्रत्याशियों को उम्मीदवारी सौंपी है। वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने मुंबई की केवल घाटकोपर पूर्व और अंधेरी पश्चिम इन दो विधानसभा सीटों पर महिला उम्मीदवार ऊतारे हैं। कांग्रेस ने भी दहिसर, धारावी, कुलाबा और मलबार हिल इन सीटों से महिला प्रत्याशियों को दावेदारी सौंपी है। तो वहीं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की पांच महिला उम्मीदवारों में से चार तो मुंबई के दिंडोशी, कुर्ला, बांद्रा पूर्व और दहिसर से ही हैं।
    वहीं शिवसेना ने मुंबई के 36 विधानसभा सीटों में से एक भी सीट पर महिला प्रत्याशी को नहीं ऊतारा है। मजे की  बात तो यह है कि महाराष्ट्र की कैज विधानसभा सीट इकलौती ऐसी सीट हैं, जहां सभी पार्टियों ने अपनी-अपनी महिला उम्मीदवारों को चुनावी जंग में खड़ा किया है।
जहां विज्ञापनों से लेकर न्यूज चैनलों की चर्चा तक में महिलाओं को बराबर की हिस्सेदारी देने की बात कही जा रही है। साथ ही चुनाव के  दौरान युवाओं की तरह महिलाएं भी राजनीतिक दलों के लिए एक खास वोट बैंक बनी हुई हैं। वहां महिला उम्मीदवारों को टिकट देने के प्रति इतनी उदासीनता राजनीतिक पार्टियों के दोगुलेपन का खुलासा करती हैं।

पार्टी
महिला उम्मीदवार
कांग्रेस
25
भाजपा
20
राकांपा
17
शिवसेना
11
मनसे
5