Monday, September 2, 2013

रो रहा है रुपया !

रूपया गिर रहा है। अर्थशास्त्र में रुपए जितनी कमजोर मैंने पूछा कहां गिर रहा है। और अगर गिर रहा है तो उसे कोई ऊठाता क्यों नहींक्या कहीं रुपयों की बारिश हो रही हैजहां रूपया धनाधन गिर रहा है। उन्होंने कहा नहीं रुपए की कीमत घट रही है। कीमत! पर रूपया तो खुद एक कीमत है। उसकी कीमत कैसे घट सकती हैउन्होंने कहाडॉलर चढ़ रहा है। डॉलर मजबूत हो गया है और रुपया कमजोर। मैंने कहातो हम रुपए को खिला-पिला के मजबूत क्यों नहीं बनाते। वैसे भी हमे खिलाने-पिलाने का बड़ा शौक है। टेबल के ऊपर भी और टेबल के नीचे भी। जहां देखो वहां खिलाने की योजना बन रही है। सारा खेल एक-दूसरे को खिलाने का ही तो है। सत्ता का सपना भी तो है पूरे देश को खिलाना। हर कमजोर का पेट भरना। रुपया भी तो कमजोर हुआ है। तो पहले रुपए को खिलाते है। आखिर पैसा पैसे को खींचता है। फिर रूपया मजबूत हो जाएगा तो उसे देश में बांट देंगे। फिर पूरा देश उस रुपए-से अपने आप जो मन करेगा खाएगा। और वैसे भी जरुरी नहीं सबको दालचावलरोटी ही पसंद हो। कोई पिज्जा-बर्गरआईस-क्रीम भी तो खा सकता है। सबकी अपनी पसंद है। लो जीघर में छोरा और गांवभर में हम ढिंढोरा पीटते फिर रहे हैं। ज्यादा दूर नहीं हम अपने चिदंबरम साहब! से क्यों नहीं पूछतेकिसे क्या खिलाना है। उन्हें देशवासियों के खाने से लेकर पहनने संबंधी बड़ी मालूमात है। 
मेरे रुपए-से जुड़े ऐसे कई नादान सवालों और फिर अति संवेदनशील सलाहों से परेशान होकर सामने बैठे अर्थशास्त्री महोदय चिढ़ गए। और भिन-भिनाते हुए वहां से ऊठकर चले गए। मूर्खों के बीच ज्ञानी या तो मौन होते है या मूर्ख की मुर्खता से परेशान होकर ऊठकर चल देते हैं।  लेकिन मेरी रुपए संबंधी जिज्ञासा उनके साथ नहीं गयी। संसद में भी सवालों से परेशान नेता खूब चीखता-चिल्लाता है। लेकिन जब उसके रटे-रटाए जवाब ख़त्म हो जाते हैतो वह चिढ़ के ऊठकर चला जाता है। मेरी तरह आम जनता की चिंता उनके जाने के साथ नहीं जाती। वो बनी रहती है। उसमें लगातार इजाफा होता रहता है। 
         मेरी समझ से रूपया देश का आम आदमी है और डॉलर सत्ता। रूपयामनरेगा योजना में काम करता मजदूर है। उसी योजना के कलेक्टरअफसरमंत्री डॉलर हैं। प्याज की कीमत डॉलर है। उसे उगानेवाला किसान रुपया है। मिड-डे मील डॉलर है। उसे खानेवाले बच्चे रूपया। बलात्कार की शिकार लड़की रूपया है। बलात्कारी डॉलर। कोयले की प्राकृतिक खदाने रूपया है। कोयला मंत्री डॉलर। आस्थाधर्म रूपया है। धर्म की राजनीति डॉलर। सड़क पर सोता आदमी रूपया है। उसे रौंधती गाड़ी डॉलर। ढोबलेदुर्गा रूपया है। तबादला करवाती सरकार डॉलर। डॉ. दाभोलकर रुपया है। उनके हत्यारे डॉलर। देश की सड़केइमारते रुपया है। रुपया कमजोर है। 'समाज की नैतिकता रूपया हो गयी है।रूपया गिर रहा है। रुपया घिस रहा है। रुपया रो रहा है। डॉलर दिन-ब-दिन समृद्ध हो रहा है। डॉलर रेत माफिया है। डॉलर मंत्री है। डॉलर सत्ता है। डॉलर ताकत है। डॉलर मजबूत है। डॉलर निर्भीक और निडर हो गया है। इसलिए डॉलर रुपए पर हावी हो गया है। 

            रुपए को ऊठाने के लिए देश का सोना गिरवी रखने की योजना बन रही है। देश का सोनादेश की चमकदेश की ईमानदारीदेश की शानदेश के सम्मान की तरह हो गयी है। उसे गिरवी रखकर हम रुपए को मजबूत करना चाहते है। गौरतलब है कि रुपए को मजबूत बनाना चाहते है या डॉलर को इसपर अभी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। वैसे भी इसपर सोचना आम आदमी के दायरे में नहीं आता। ये काम सिर्फ नेताअफसरमंत्रीसंतरी के अधीनस्त है। ये अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा है। देश की जनता को राष्ट्रीय मुद्दे पर सोचने की भी सीमित छूट है। हाँ, अगर बात पकिस्तान की होती तो देश की सोच विपक्षी दल के लिए महत्त्वपूर्ण हो जाती।  खैरवे गिरवी रखकर देश के भविष्य को उज्जवल बनाना चाहते हैं। गिरवी तो किसान भी अपनी जमीन रखता है। बनिया अपनी दुकानबेटी की शादी के लिए। लेकिन फिर भी उसकी बेटी जलती हैउसकी बेटी मरती हैउसकी बेटी बिकती है। गरीब औरत खुद को गिरवी रखती है। फिर भी उसका भविष्य उज्जवल नहीं होता। डर है कि कहीं इस गिरवी रखने की प्रथा में हमारे नेतागण कहीं पूरे देश को ही एक दिन गिरवी न रख दे। अपने लिए नहीं भाई! देश के उज्जवल भविष्य के लिए। लेकिन डर तो ये है कि कहीं ब्याज न चुकाने की वजह से देश का भविष्य जल न जाएमर न जाएबिक न जाए। 
                                                                                                           - सोनम गुप्ता 

दबंग दुनिया में प्रकाशित व्यंग्य निबंध का कट-आउट (02/09/13)