Friday, August 16, 2013

भिन्न-भिन्न खोपड़ियां, भिन्न-भिन्न टोपियां।

    12 अगस्त को दबंग दुनिया में प्रकाशित व्यंग्य निबंध     

        टोपी का अपना ही महत्त्व है। टोपी न केवल धूप से बचाती है, बल्कि शान भी बनाती है। टोपी के कई प्रकार प्रचलित हैं। जैसे धूप की टोपी, धर्म की टोपी, कर्म की टोपी, दिखावटी टोपी, बुनावटी टोपी, शिकार की टोपी, चुनाव की टोपी, इत्यादि। सबका अपना रंग-रूप और मौसम होता है। जी हाँ, टोपी का भी मौसम होता है। सूरज सिर चढ़ता है। आग उगलता है, तो अपने खोपड़ी की रक्षा करने के लिए चोंचवाली टोपी। लड़कियों के लिए इसमें भी कई प्रकार और डिजाइन है। गोल, अंडाकार, लम्बी, चौड़ी, पतली, हलकी, भारी, आदि-आदि। जंगल में शिकार करने जाओ तो अलग टोपी। हर समय के लिए, हर खोपड़ी के लिए  टोपीवालों ने अलग-अलग टोपी ईजाद कर रखी हैं। आगे भी जरुरत के साथ और नई-नई बाजार में आती रहेंगी। 
      फ़िलहाल, हमारे देश में ईद की टोपी बड़ी चर्चित है। वैसे अपने मुंबई के डिब्बेवालों की टोपी भी वर्ल्ड फेमस है। इसको उन्होंने अपनी मेहनत से अमरीका तक पहुंचाया। मेहनत तो ये टोपी पहनानेवाले लोग भी बहुत करते हैं। दिन-रात टोपी पहनाने के नए-नए तरीके खोजने में व्यस्त रहते है। खैर, ईद आया। चांद छाया। इफ्तार पार्टियां मनाई गई। कभी पंजा, तो कभी घड़ी देख, तो कभी साईकिल पर सवार हो पत्रकारभाईलोग अपनी ईदी लेने पहुंच गए। कई जगह इफ्तार पार्टी में कमल भी खिले। पत्रकारभाईलोग के बाद अपने दद्दा, चच्चा, मामूजान का भी नंबर आया। शिकारी आगामी चुनाव के लिए जाल बिछाने लगे। गले मिलने लगे। सिमय्या खाने लगे। टोपियां पहनने लगे। कुछ की खोपड़ी में आराम से ईद की टोपी फिट आ गई। तो कुछ अपनी फिट की बनवाकर ले आए। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मौसम देखते ही टोपी पहन ली। रजा को खूब भायी इनकी टोपी। नमो ने टोपी को अपने खोपड़ी पर सवार होने से पहले ही बीच रास्ते में ही दुआ-सलाम कर वापस भेज दिया। ये बात रजा को नहीं पसंद आई। रजा भाई ने खूब बोला। टोपी को धर्म से जोड़ा। टोपी पहनने और पहनाने का हल्के में पोल खोला। फिर भी नमो को ईदगाह की टोपी नहीं जची। उनको 2011 में भी नहीं जची थी। रजा नाराज हुए। अरे, इसमें नाराज होनेवाली कौन-सी बात थी? अपनी-अपनी पसंद है। जिसको जो कम्फर्टेबल लगता है। नमो को टोपी नहीं फेटा, पगड़ी लुभाता है। लुभाएगा ही। यही पगड़ी, यही फेटा उसको राजनेता का टोपी पहनाता है। नमो को मालूम है कि सर सलामत तो टोपी हजार। अगर वो रजा की टोपी पहन लेते तो उनका सर सलामत रहने का चांसेस कम हो जाएगा। मगर रजा की तो एक ही मुराद थी। नमो को टोपी पहनाना। जो पूरी नहीं हो पाई। नमो, रजा की टोपी पहनने के लिए राजी नहीं हुए। इसलिए अभी वो खफा है। 
        नेतालोग को पता है, कब कौनसी टोपी किसको पहनानी है। वो आम आदमी को हर रोज टोपी पहनाता है। उसको अचानक से टोपी पहनाने का शौक चढ़ जाता है। वैसे अपने मुंबई के डिब्बेवालों को भी टोपी पहनाने का बहुत शौक हैं। लेकिन उनके शौक में सत्ता का स्वार्थ नहीं मिलता। उनका शौक तो बस शौक है। आम आदमी का शौक है।लेकिन नेता का शौक आम नहीं होता। उसके पीछे कुछ तो ख़ास होता है। अभी  उसको टोपी पहनाने का शौक लगा है। इफ्तार की पार्टी रख के, दिवाली मना के। घूम-घूम के वह टोपियां पहना रहा हैं। बाद में कुर्सी पर बैठने के बाद वह टोपी भूल जाता है। फिर उसको पहनाने में नहीं टोपी उछालने में मजा आता है। मैंने कहा था न टोपियों का मौसम होता है। पहनने का भी और उतारने का भी। अभी ईद गई। गणेशोत्सव आएगा। फिर सब नेता टोपी पहनाने के काम पर लग जाएंगे। कुछ पहनेंगे, कुछ नहीं। सब अपना-अपना मौसम देख के रंग बदलेंगे। इसकी टोपी उसके सर मढ़ देंगे। हम खुश होते हैं। उसने हमारे जैसी टोपी पहनी। हमारी टोपी पहनी। ये सोच के खुश होते है। वोट देते है। वो टोपी पहना के, टोपी पहन के वोट लेते है। बाद में हमारी टोपी उछाल देते हैं। हम अपनी टोपी के नीचे की खोपड़ी को खुजाते हैं। पश्चाते है। लेकिन ये टोपीवाले चुनाव के बाद गांधी टोपी और चुनाव के वक़्त धर्म की, छल की, झूट की, वादों की, कच्चे इरादों की टोपी और भिन्न-भिन्न किस्म की टोपियां लेकर हमारे दरवाजे पर पहुंच जाते हैं। हमारे सिर पर सवार हो जाते है। और हम टोपी पहन के पश्चाते हैं। ये टोपी पहन के सत्ता बनाते हैं। 
                   भिन्न-भिन्न खोपड़ियों के लिए भिन्न-भिन्न टोपियां होती हैं। सबका अपना अलग रंग-ढंग, चाल और मिज़ाज होता हैं। राजा की शान की टोपी, बनिए की नपी-तुली टोपी, पंडित की लोभी टोपी, अफसर की रिश्वत खाती टोपी, पड़ोसी की ईर्ष्यालु टोपी, डॉक्टर की मरीजो का खून चूसती गहरी लाल रंग की टोपी, लेखक की दंभी टोपी, पत्रकार की चापलूस टोपी, आम आदमी की धूल चाटती टोपी और नेता की विशेष चमकीले, आकर्षक वादों से सजी-धजी, लूटती-खसोटती टोपी। एक-से बढकर एक निराली टोपी। प्यारी और दुलारी टोपी। टोपी तेरे रूप अनेक, मैं हूं अचंभित तेरे गुण-धर्म देख।  
।। टोपी देव्यै नमो नमः ।।    
                        
                      - सोनम गुप्ता
प्रकाशित लेख का कट-आउट 



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