Sunday, August 11, 2013

रघुराम राजन और 'नाथू' की जिज्ञासा

  दबंग दुनिया में 09 अगस्त को प्रकाशित मेरा लेख...हमेशा की तरह आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।                       

                "रघुराम राजन भारतीय रिज़र्व बैंक के 23वें गवर्नर नियुक्त किए गए।" होटल में चाय पीते वक़्त यह खबर सामने न्यूज चैनल पर चल रही थी। तभी नाथू, जिसके हम डेली कस्टमर थे, अपने मैले कटके से हमारी टेबल साफ़ कर रहा था। उसका कटका पहले लाल धारीवाला सफ़ेद दरी जैसा रहा होगा लेकिन फ़िलहाल वो मठमैले रंग का हो गया था। इसलिए पता नहीं कि वो टेबल साफ़ कर रहा था या.…बीए पास नाथू की नजर टीवी पर थी और हाथ टेबल पर। उसने न्यूज देखते ही हमसे पूछा कि मैडम, "ये रघुराम राजन कौन है?" मैंने कहा,"यह हमारे रिज़र्व बैंक के नए गवर्नर है। जिन्हें 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहाकार के रूप में नियुक्त किया था।" यह सुनते ही नाथू की जिघ्यासा बढ़ गई उसने फिर पूछा यह सलहाकारलोग क्या करते है? मैंने कहा, "यह लोग समय-समय पर मंत्रिलोगो को सलाह देते है। कौन-सी योजना बनानी चाहिए, किस योजना से जनता का कम सरकार का ज्यादा फायदा होगा, सरकारी फंड को कैसे अपने हित के लिए काम लाना चाहिए, वगैरह, वगैरह।" मेरा जवाब सुनते ही नाथू की खोपड़ी एकदम से सोचने लगी। उसने आशंकित भाव से मुझसे कहा, "अच्छा! तो मैडम क्या इन्ही लोगो की सलाह की वजह से नेतालोग ऐसा-वैसा कुछ भी पीलान बनाता है।" इतना कहने के बाद बगैर मेरे जवाब का इंतजार किए वह चिढ़ते हुए फिर बोलने लगा, "क्या इसी रघुराम राजन की सलाह की वजह से टमाटर-कांदा के भाव आसमान को चढ़े है?  ट्रेन की टिकिट में हमको ज्यादा पैसा देना पड़ता है? क्या इसी की सलाह की वजह से 5 रुपए का वडापाव 10 रुपए का हो गया है?" मैंने सकपकाते हुए नाथू की ओर देखा और अपने पूरे ज्ञान के जोर पर जवाब देने की कोशिश की। "अरे, नाथू रघुराम राजन शिकागो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रह चुका है। राजन भारत के साथ-साथ अमेरिका का भी नागरिक है। उसने बहुत सारा किताब भी लिखा है।" इस से पहले की मैं आगे अपनी बात पूरी कर पाती नाथू बोल पड़ा, "शिकागो यूनिवर्सिटी किधर है?" मैंने बताया अमेरिका। उसने झट से कहा, "वो ओबामावाला अमेरिका।" मैंने हम्म में जवाब दिया। तब नाथू फिर बोल पड़ा, "ओह्ह! तो यह साहब अमेरिका में पढ़ाते थे। पढ़ाते थे मतलब उधरिच रहते भी होएंगे। क्योंकि अमेरिका से भारत तो सात समुंदर दूर है न! रोज थोड़े न आ-जा सकते होएंगे। तो यह कैसा अपना देश का लोग को, उनकी जरुरत को समझेगा? इसीलिए तो ऐसा अकडमबकडम सलाह देके इसने हमलोग का पॉकेट ही खाली कर डाला। अभी इसको रिज़र्व बैंक का काम क्यों दिया? इसने वहां भी गड़बड़ सलाह दिया तो? हमारी जेब खाली करने की सलाह देने के बाद इसने रिज़र्व बैंक का तिजोरी खाली कर दिया तो?" फिर थोड़ी देर अपने बुद्धिमान दिमाग को खुजलाने के बाद नाथू फिर बोला,"ये अमरीका का भी नागरिक है। ओह्ह्ह. . . इसीलिए तो अपना रूपया का कीमत उनलोगों का डॉलर के मुकाबला कम ही होता जा रहा है। ये उस देश का सोचेगा या इस देश का? नागरिक तो यह दोनों काइच है।" नाथू की देश चिंता देख मैंने उसे कहा, "2008 में वैश्विक वित्तीय संकट की सबसे पहली भविष्यवाणी करनेवाले रघुराम राजन ही थे।"  नाथू ने मेरी बात पर मुस्कुराते हुए कहा,"भविष्यवाणी तो रोड पे बैठा वो तोतावाला पंडित बी अच्छा करता है तो क्या अबी उसको देश का प्रधानमंत्री बना देने का?" मैंने नाथू को समझाने के लिए कहा,"नाथू, यह अपना देश का बहुत बड़ा और धुरंदर इकोनॉमिस्ट बोले तो अर्थशास्त्री है।" नाथू तुरंत बोला, "वही न जो अपना प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री है।" मेरे हाँ, बोलते ही उसके चेहरे का रंग एकदम से बदल गया और वह चिढ़ते हुए निराशा के साथ बोला, "फिर तो जानेइच दो। अबतक 2 अर्थशास्त्री मिल के देश का अर्थशास्त्र बिगाड़ रहा था। अब ये तीसरा आके आम आदमी को किधर पटकेगा मालूम नहीं।"   
                                                                                                           - सोनम गुप्ता  
प्रकाशित लेख का कट-आउट 

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणिया बेहद महत्त्वपूर्ण है.
आपकी बेबाक प्रातक्रिया के लिए धन्यवाद!