Wednesday, December 24, 2014

मोदी का अधूरा अश्वमेध

क्षेत्रीय क्षत्रपों की बैशाखियों से कैसे पार लगेगी वैतरणी

- सोनम गुप्ता


          झारखंड और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव के परिणामों ने यह बात साबित कर दी है कि जनता पूर्ण रूप से भाजपा के साथ नहीं है. हाल ही में विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा बहुमत पाते-पाते रह गई. भले ही महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में पहले के मुकाबले लगभग दोगुने सीटों पर जीत मिली हो, लेकिन फिर भी भाजपा पूर्ण बहुमत को पाने में असमर्थ रही है. दरअसल जनता ने भाजपा को उनके समर्थन में नहीं बल्कि सत्ता के खिलाफ मतदान किया है. ये एंटी इन्कम्बसी का ही परिणाम है कि आज देश के ज्यादातर राज्यों में भाजपा सर्वाधिक  वोट हासिल कर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है. लेकिन यहां यह भी उल्लेखनीय है कि झारखंड, हरियाणा, जैसे हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा ने अपने बूते पर अपनी पकड़ को पहले से मजबूत बनाया है.
          इसे अमित शाह का करिश्मा या मोदी की लहर की बजाय एंटी इन्कम्बसी के रूप में देखना चाहिए. कांग्रेस लव जिहाद, धर्मांतरण, संस्कृत शिक्षा, जैसे मुद्दे उठाकर वर्तमान सरकार को विकास के एजेंडावाले छवि से बाहर निकालना चाहती है. ऐसे में गुस्साई जनता के इस अर्धजनादेश को संभाले रखना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण होगा. जिस तरह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सार्वजनिक तौर पर यह स्पष्टï कर दिया कि वे धर्मांतरण के मुद्दे के खिलाफ हैं. उसी तरह उन्हें अपने समर्थकों को भी कट्ïटर हिंदुवाद का प्रदर्शन करने की बजाय सेकुलर विचारधारा को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा. बेहद मुश्किल और कड़ी मश्क्कत के बाद भाजपा न केवल केंद्र बल्कि कई राज्यों तक में सरकार बनाने में समर्थ हो पायी है. और अगर वह लंबे समय तक सरकार में बने रहना चाहती है, तो उसे जनता का विश्वास हासिल करना होगा. राजस्थान में भाजपा के विधायकों के गाली-गलौज भरे रवैये ने जनता को एक बार फिर निराश ही किया है. पिछली सरकार में जिस तरह नेताओं की छवि बिगड़ी है, उसे न केवल संवारने बल्कि और भी सशक्त बनाने का जिम्मा मोदी सरकार पर है.


विश्वास कायम रखने की जिम्मेदारी है सरकार पर
         इस बार के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सबसे अच्छी बात यह रही कि जनता का विश्वास लोकतंत्र में पहले के मुकाबले बढ़ा है. जम्मू-कश्मीर में पिछले कई सालों के मुकाबले अधिक मतदाताओं ने वोट डाला है, तो वहीं झारखंड में पिछले २५ सालों में इस बार सर्वाधिक वोट दर्ज किए गए हैं. यह संकेत है कि लोग बदलाव चाहते हैं और उन्हें विश्वास है कि हमारी सरकार हमारा लोकतंत्र यह बदलाव ला सकता है. इसलिए मोदी सरकार पर अब केवल अपने सरकार को बनाए रखने की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि साथ ही लोकतंत्र में जनता के विश्वास को और भी मजबूत बनाने का दारोमदार भी मोदी सरकार पर ही है. वर्ना वो दिन दूर नहीं कि मोदी का स्वच्छता अभियान और विकास की राजनीति कहीं कोने में दबी पड़ी रह जाएगी और दूसरा अयोध्या कांड जन्म लेने लगेगा. 

 
मोदी परीक्षा

2 comments:

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  2. सुन्दर लेख और अच्छा सुझाव। :)

    लोकतंत्र का मतलब भाजपा नहीं है। जनता स्वतंत्र है किसी को भी वोट देने के लिए। यही लोकतंत्र है यही स्वराज है। अतः एक लोकतंत्र में किसी एक पार्टी का ही अश्तित्व होना या पूरी जनता का किसी एक पार्टी के ही साथ होना पूरी तरह से अपेछित नहीं होना चाहिए।
    बात करते है जनता का भाजपा के साथ होने की, मोदी लहर की और एंटी इंकम्बैंसी की तो एंटी इंकम्बैंसी का मतलब भी सिर्फ ये नहीं होता कि सिर्फ भाजपा को ही वोट दिया जाए। और भी बहोत सी मजबूत पार्टियां हैं। जनता इनको भी तो चुन सकती थी। लेकिन जनता ने लोकसभा और कई राज्यों की विधानसभा चुनावों में न सिर्फ भाजपा को ही चुना बल्कि बहोत सी दिग्गज पार्टियों का अस्तित्व ही खत्म कर दिया। हम यहाँ पर ये दर्शाना चाहते हैं की अगर लोग ये सोचते हैं की भाजपा सिर्फ एंटी इंकम्बैंसी की वजह से जीत रही है तो ये उनका भ्रम है। भाजपा के इस तरह से जीतने के पीछे बहोत से कारक का हाँथ रहा है - अन्ना-केजरीवाल आंदोलन, विरोधी पार्टियों द्वारा मुश्लिम वोट की राजनीति जिसके फलस्वरूप सारे हिन्दू वोट का संगठित होना, मेरठ राइट्स, लोगों का कांग्रेस के प्रति गुसा (एंटी-इंकम्बैंसी), गुजरात का रोल-मॉडल बनना और हाँ कोई माने या न माने लेकिन बेसक सबसे ऊपर नरेंद्र मोदी। उपरोक्त सारे कारकों का अगर आप आकलन करके देखे तो इन सभी कारको का फायदा भाजपा को दिलाने का श्रेय सिर्फ नरेंद्र मोदी को जाता है। अन्यथा और भी पार्टियां थी जो इन सभी कारकों का फायदा उठा सकती थी लेकिन वे नाकाम रही। यहाँ पर अगर हम आज की तारीख में ये कहें कि मोदी ही भाजपा है तो कोई अतिसंयोक्ति न होगी। मेरा इसरा किस तरफ है सायद ये लोगो को समझ आ गया होगा।
    जम्मू कश्मीर में जहाँ भाजपा को अपना अश्तित्व बचाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी इस बार दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। और हाँ अगर यहाँ एंटी इंकम्बैंसी की बात करे तो सायद इसका नुक्सान भाजपा को ही हुआ है। साफ जाहिर है की इस राज्य में जहाँ लोग चुनाव का बहिष्कार करते थे इसबार सिर्फ इसलिए वोटिंग करने के लिए गए है की कही भाजपा जीत न जाए, पूर्ण बहुमत में न आजाए।
    हरयाणा, झारखण्ड जहाँ आज तक भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला इस बार के चुनाव में पूर्ण बहुमत पाने में सफल रही। महाराष्ट्र जहा आजतक भाजपा कभी २ अंको के आंकड़े को पार नहीं कर पाई इस बार सैकड़ा पार करके सबसे बड़ी पार्टी बानी।
    अतः हम स्पस्ट रूप से ये कह सकते है की लोकसभा चुनाव और कई राज्यों की विधान सभा चुनाव में जनता ने ये स्पस्ट कर दिया है कि वो और उनका विश्वाश भाजपा और मोदी के साथ है। और आपने बिलकुल सही लिखा है कि हर साल की अपेक्षा इस बार जिस प्रकार मतदान पर्सेंट बढ़ा है, लोगो का विश्वाश लोकतंत्र में बढ़ा है और उसके पीछे कही न कही मोदी सरकार का ही हाँथ है। और इस विश्वाश को बनाये रखने का दारोमदार मोदी सरकार पर ही है।

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