Tuesday, August 27, 2013

शाहूगिरी बनाम बूट पोलिश की जय हो!


               झारखंड के योगेंद्र शाहू ने कृषि मंत्री बनने के लिए किए गए संघर्षो के राज मंच पर खोल दिए। तो सब जगह हू-हा मच गया। सबकी आंखे चौड़ी हो गयी। कांग्रेसवालों के नथुने गुस्से से फुंफकारने लगे। विपक्षी दल को चुटकी काटने का मौका मिल गया। उसे गर्लफ्रेंड की तरह चुटकी काटने में बड़ा मजा आता है। मौका मिलते ही वह अपने प्रेमी-कम-एटीएम मशीन को लपक के चुटकी काटती है। थप्पड़ से ज्यादा चुटकी चुभती है। कचोटती है, दुखती है। शाहू कृषि मंत्री बनने पर अपनी ख़ुशी को संभाल नहीं पाए। और सबके सामने अपने पापड़ बेलने की बात कह दी। दिल्ली में अपने 15 दिनों की सेवा-साधना के भी राज खोल दिए। ये उन्होंने ठीक नहीं किया। बड़े-बुढो ने कहा है, नेकी कर और दरिया में डाल। उन्होंने दिल्लीवासियों की जो सेवा-पूजा की उसे जग जाहिर करने की क्या जरुरत थी। अब बड़े-बूढ़े नाराज हो गए तो! लगता है बाकि नेताओं की तरह वो इस नेकी को दरिया में डालना भूल गए। दरअसल दिल्ली से झारखंड लौटते वक़्त उन्हें रास्ते में दरिया मिला नहीं होगा। इसीलिए वे ऐसा करने से चूक गए। अरे, दरिया नहीं मिला तो नदी या नाले में ही डाल देते। नेकी ही तो थी। कहीं भी आसानी से खप जाती। लेकिन उनका ये सच बोलने का बड़प्पन राजनीति में कैसे खपेगा? वैसे शाहू ने बाद में सच को यानि अपने बयान को मजाक कहकर टाल दिया। हमारे यहां बयान देकर उस से पलटने का अनुभव कमोबेश ज्यादातर नेताओं को है। यह अनुभव उन्हें राजनीति में परिपक्कव बनाने में सहायता करता है। आलाकमानो को उनके पलटने के गुण से वाकिफ करवाता है। अपने वादों, बयानों से पलटने का गुण भारतीय राजनीति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गुण है। उतना ही महत्त्वपूर्ण जितना बेटे की शादी में ज्यादा-से-ज्यादा दहेज़ घर लाने का गुण। खैर, नेता बयान देते है और फिर उसे झूठ कह देते है। या मीडिया की तोड़ने-मरोड़ने की आदत को जिम्मेदार ठहरा देते है। नेता जब सच कहता है तो मान लेना चाहिए कि उसका हर एक शब्द झूठ की पीठ पर सवार है। और जब वह किसी तथ्य को पूरी तरह झूठ कह दे तो संभवत: हो सकता है कि उसमें थोड़ी-बहुत सच्चाई हो। देश की लोकतांत्रिक राजनीति में फ़िलहाल सच का थोडा अभाव चल रहा है। सच को अफोर्ड करने की क्षमता हमारे राजनीतिज्ञों के पास नहीं है। प्याज और टमाटर की तरह सच भी दिन-ब-दिन महंगा होता जा रहा है। जिस तरह आम आदमी प्याज-टमाटर और बहुत सारी जरुरी चीजों को अफोर्ड नहीं कर सकता। उसी तरह हमारे नेतागण सच को अफोर्ड नहीं कर सकते।  
       गौरतलब है कि शाहू ने दिल्लीवालों के जूते चमकाने की बात भी जोश में कह दी। वैसे इसमें भी कोई ज्यादा हायतोबा मचाने की बात नहीं है। शाहू ने तो सिर्फ कहा है। माया मैडम के जूते तो मीडिया के कैमरों के सामने बड़े-बड़ो ने चमकाए है। हम समतावाद में विश्वास रखते है। जो नीचे है उसे ऊपरवालो के जूते साफ़ करने ही पड़ते है। उसे बड़ो के जूते चमकाने ही पड़ते है। किसी विद्वान ने कहा है आदमी की पहचान उसके जूतों से होती है। जूते चमकेंगे तो आदमी भी चमकेगा। जिसके जूते चमके वो भी और जिसने जूते चमकाए उसका भी भाग्य चमकेगा। वैसे भी आम आदमी की कमर महंगाई ने इस कदर तोड़ दी है कि वह चाहकर भी ऊपर नहीं देख सकता। तनकर खड़ा नहीं हो सकता। ऐसे में उसकी नजर जूतों तक ही पहुंच पाएगी। और जब जूते चमकदार होंगे तो आम आदमी का भ्रम कायम रहेगा। जूतों की चमक में आम आदमी के आंसू खो जाएंगे। उसे नहीं पता चल पाएगा कि चमकते जूतों के भीतर इंसान है या भेड़िया। किसी ने हिम्मत कर कमर सीधीकर ऊपर जूतेवाले को पहचानने की कोशिश भी की तो वही चमकता जूता उस सीधे कमरवाले आदमी के मुंह पर पड़ते देर नहीं लगेगी। खैरशाहू के बयान पर जनता जोरदार ठहाके लगाकर हंस रही है। वह इसको ज्यादा सिरयसली नहीं ले रही। उसे पता है, मंत्री उसके वोट से नहीं बल्कि जूते चमकाकर ही बनते है। क्योंकि उसके वोट भी आज-कल पैसो पर बिकते है।      
- सोनम गुप्ता

दबंग दुनिया का कट-आउट 

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणिया बेहद महत्त्वपूर्ण है.
आपकी बेबाक प्रातक्रिया के लिए धन्यवाद!