चार पहियावाले ने देखा,
दो पहिया सवार ने देखा,
देखा उसके दोस्त ने,
दिखाया बगलवाले को,
बस में सवार लोगो ने,
सड़क पर पड़े उन देहों को,
जो कुछ देर पहले,
सवार थे दो पहियों पर,
देखकर उन्हें,
कुछ की गति धीमी हुई,
झांका इंसानियत के शीशों से,
फिर उनकी इंसानियत,
ख़त्म हो गयी,
और बढ़ गयी,
पहियों की गति,
पड़े थे देह,
आ गए थे,
बड़े पहियों के नीचे,
बिलख रहा था बच्चा,
रो रहा था बाप,
पहियों ने देखा,
कैमरे ने देखा,
लेकिन किसी इंसान ने नहीं देखा,
देखते ही देखते,
सबके देखने में,
दो देह लाश में तब्दील हो गए,
वह सब देखनेवाले मर गए।
- सोनम प्र. गुप्ता
तुममे अच्छा लिखने की पूरी संभावनाएं है ......जरुरत बस लिखते रहने की है ...
ReplyDelete@Amitabh Shrivastav Sir....धन्यवाद सर…बस कोशिश जारी है।
Deleteबहुत खूब... अच्छा लगता है जब कोई ऐसा लिखता है... लेकिन उसी वक्त जलन भी होती है कि मैं क्यों नहीं लिख पाया ऐसा ही... खैर, जिसकी कलम पहले चली वही बादशाह... कल ही एक ऐसे वाकये से सामना हुआ था मेरा... एक सड़क दुर्घटना से... हाँ, इंसानियत को जिंदा रखा मैंने...
ReplyDeleteआप जैसे इंसानियत को जिंदा रखनेवालो की सख्त जरुरत है। खैर, आज हमारी कलम चल गई, कल आपका मौका हो सकता है। उसके लिए पहले ही शुभकामनाएं!
Deleteआप जैसे इंसानियत को जिंदा रखनेवालो की सख्त जरुरत है। खैर, आज हमारी कलम चल गई, कल आपका मौका हो सकता है। उसके लिए पहले ही शुभकामनाएं!
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