Thursday, May 23, 2013

जेट पर सवार हमरे अखिलेश भैय्या

जेट पर सवार हमरे अखिलेश भैय्या 


अखिलेश भैय्या वाशी तक आए। यह खबर पहले ही मालूम होती तो अम्मा (दादीजी) से कहकर चबैना मंगवा लेती। पिछले साल शादी में गए थे, तब जो दुपट्टा घर में छूट गया वह भी साथ आ जाता। सोचा था भैय्या अपनी साईकिल पर सवार होकर आएंगे। इतना सामान कैसे लाते। लेकिन भैय्या तो सीधे जेट प्लेन में बैठकर घर के बगल में आ पहुंचे। पहले से खबर होती तो मेरे छोटे-मोटे कितने ही सामान घर से सुरक्षित जेट की सवारी करते हुए आ जाते। भीतर न सही ऊपर छत पर या टॉयलेट के पास तो रखवा ही सकते थे। ट्रेन की टिकिट के लिए हो रही मारा-मारी के बीच कब से कितने ही महत्त्वपूर्ण सामान उत्तर प्रदेश से मुंबई नहीं पहुंच पाए हैं। भैय्याजी को अपने मुंबई आने की खबर का मेरे गांव में भी ढिंढोरा पिटवाना चाहिए था। जरूरतमंद लोग इसी बहाने बंबई तक खुद पहुंचने या अपने परिजनों तक कुछ पहुंचाने की कोशिश तो करते। कम-से-कम 77 वर्षीय मेरे छज्जू चाचा की मुंबई घूमने की 60 साल पुरानी अभिलाषा तो पूरी हो जाती। ट्रेन में जो गर्दी है उसमें तो डर लगा रहता है कि कहीं महाराष्ट्र की सीमा में पहुंचने से पहले ही छज्जू चाचा कहीं परलोक की यात्रा में शामिल न हो जाएं। एम्. ए. पास रमेश पिछले फरवरी महीने से ही रेल के चालू डब्बे में बैठकर यहां मुंबई आना चाहता है, ताकि यहां के किसी फुटपाथ पर भाजी बेचने का ठेला लगा सके। अखिलेश भैय्या ने बताया होता तो वह भी प्लेन के किसी पंखे-वंखे से लटककर यहां पहुंच जाता। 26-28 घंटे लटकने से तो दो-ढाई घंटे लटकना ज्यादा सुविधाजनक होता। मैं समझ सकती हूं, कि जेट में जगह की कमी है। मुंबई में भी जगह की कमी है। इसीलिए तो उत्तर प्रदेश भवन मुंबई के बजाय बगल के नवी मुंबई में बनाया गया है। खैर, इसके उदघाटन में फलाना-ढिमका नेता का आना जरुरी था। हमारे यूपी के सभी लोग जानते हैं कि पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता। अपने अखिलेश भैय्या तो ठहरे डेढ़ सयाने गुड़ खाएं और गुलगुलों से परहेज करें, ये यूपी की मिट्टी का अपमान होता। अखिलेश भैय्या मिट्टी के माधो नहीं हैं। इसलिए भैय्या मिट्टी की परम्परा का सम्मान करते हैं और सबको ये सीख भी देते हैं कि घर में रहकर घरवालों से परहेज नहीं किया जाता। वो घर चाहे अपना घर हो, सरकारी घर हो, राजधानी का घर हो, लखनऊ का घर हो, मुंबई का घर हो या फिर प्राइवेट बोईंग विमान ही क्यों न हो। असली मजा तो अपने सब के साथ आता है। पहलवान कम मास्साब पप्पा ने सब सिखाया है। चच्चा हो, चच्ची हो, भैय्या हो, भाभी हो, डिम्प्पी हो, शिम्प्पी हो, भैय्याजी सबको संभालने का जतन करते हैं। दामाद में बड़ा दम होता है। पप्पा की सीख काम आई। जिसको भी ला सकते थे भैय्या जेट में सबको समेट लाए। रिश्तेदार तो रिश्तेदार सब बड़े और जानेमाने पत्रकारों को भी समेट लाए। पत्रकारों को छोड़ आते तो 2014 के चुनाव के दौरान अपनी साईकिल 8 कॉलम के किसी कोने में ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलती। मेरे चाचाजी ने कहा काश! हम भी किसी बड़े अखबार के पत्रकार होते। इसी बहाने जेट प्लेन का सफ़र तो कर लेते। मैंने भी सोचा काश! चाचाजी किसी नामी अखबार के पत्रकार होते तो इसी बहाने मेरे गरीब खाने में अखिलेश भैय्या के चरण तो पड़ते। लेकिन फिर भी हिम्मत करके मैं उनसे मिलने और उन्हें अपने घर बुलाने जरुर जाउंगी। आखिरकार, राहुल भैय्या की तरह उनका भी चुनावी टारगेट युवा पीढ़ी है। सोच रही हूं कि अखिलेश भैय्या के उत्तर प्रदेश भवन के कार्यक्रम में पहुंचकर एकाध लेपटॉप मैं भी लपक लूं। मैं भी युवा हूं और ग्रैजुएट भी हूं। एक लेपटॉप पर तो अपना हक़ भी बनता है। हम तो संतोषी किस्म के इंसान हैं। लेपटॉप नहीं तो ना सही। अगर साईकिल ही नसीब हो जाए तो हम उसी से काम चला लेंगे। भागते-भागते कुछ मिले न मिले साईकिल तो मिल ही सकती है।  
                            -सोनम प्रगुप्ता 

3 comments:

  1. AApka vyang shikhar ke uchtam bindu ko chhu raha hai.akhlesh bahiya vishey aur vyang dono ke hi patra hai jinki vishvniyta mai kami aai hai.aapki bhasha prashansney hai,sars aur saral hai yada kada kuch kahi khami bhi dikhai di hai per kul milaker aapka pratham pryas sarahnye hi.likhti rahye.
    dinesh saxena

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  2. @Dinesh Dinesh Saxenaji...धन्यवाद!
    Gopi Krishan भैय्या...आपका भी शुक्रिया।

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आपकी टिप्पणिया बेहद महत्त्वपूर्ण है.
आपकी बेबाक प्रातक्रिया के लिए धन्यवाद!