Thursday, October 11, 2012

बारी है उन्हें बहिस्कृत करने की



           पिछली दफा यहीं किसी पन्ने पर मैंने दहेज़ प्रथा के बारें में कुछ अपने अनुभवों को और अपने विचारो को व्यक्त किया था. दहेज़ के खिलाफ लिखने के बावजूद उम्मीद से अधिक प्रातक्रिया मिली. कई मेसेज और फोन आये, बधाइयाँ मिली, तो किसी ने इस मुहिम को जारी रखने की सलाह दी. इनसब को धन्यवाद मेरा मनोबल बढ़ाने की कोशिश करने के लिए. लेकिन माफ़ कीजियेगा, सच कहू तो मुझे तनिक भी  वह प्रेरणा, वह उम्मीद आप सभी की प्रतिक्रियाओं में नहीं दिखी. जिसकी आस में मैंने इसपर लिखने का मन बनाया था. अगर मुझे बधाई देने की जगह किसी पुरुष ने एक बार भी सच्चे मन से यह कहा होता कि "मैं अपनी या अपने भाई, बेटे को नहीं बेचूंगा...यह मेरा वादा है. या किसी स्त्री ने कहा होता मैं यह सौदेबाजी नहीं करुँगी." सच कहती हु, उसी पल मेरा वह लेख लिखने का मकसद पूरा हो गया होता. गौरतलब है, कि क्या अब भी किसी का मन बेचैन नहीं हुआ. क्या अब भी किसी का जमीन, किसी की आत्मा नहीं जगी? मेरे सभी अग्रहरि मित्र अब भी अपने आप को बेचने के लिए शायद तैयार है. हो भी क्यों न पैसे का मोह जग में सबसे बड़ा...वो कहते है न " ना बाप बड़ा न भैया द होल थिंग इज दैट सबसे बड़ा रुपैया."
     मित्रो यह समय अब सिर्फ सोचने का विचार करने का नहीं रहा. अगली पीढ़ी से प्रथा बंद करने की कोशिश करेंगे, यह जवाब तो जैसे अंधे को पल भर में दुनिया देख सकने की उम्मीद देने जैसा है. न जाने कब कोई आँख दान करेगा और क्या पता इतने पर भी उसका ऑपरेशन सही होगा या नहीं. अबतक मैं नैतिकता में बंधी, सामाजिकता के लिहाज में डूबी बातें कर रही थी. लेकिन अब उसका समय भी निकल गया. जब इतने पर भी हमारा ईमान नहीं जागा तो अब अपने शब्दों को तीक्ष बनाने में मुझे जरा भी संकोच नहीं होगा. अब हमे ऐसे लालची और नैतिकताहीन दहेज़ प्रेमियों पर पूरे जोश के साथ धावा बोलना होगा. जो हमे बहुत पहले ही करना चाहिए था. क्योंकि अगर हम सही है तो फिर चाहे लाख दुनिया हमारे विपरीत खड़ी हो. प्रकृति का अटल नियम है हार उन्ही नकारात्मक विचारों की ही होनी है. अभी हालहिं में नवी मुंबई में एक कार्यक्रम हुआ. जहाँ संस्था के एक सदस्य के साथ इसी मुद्दे पर चर्चा करते वक़्त उन्होंने कहा कि "दहेज़ लेनेवाले लोगों को समाज के कार्यक्रम में बकायदा बुलाकर उनपर मंच पर व्यंग कसते हुए हसीभरा  सम्मान करना चाहिए...उनके इस शर्मनाक काम के लिए सभी के सामने उनका पर्दाफाश करना चाहिए. ताकि लोगो के सही चेहरे सबके सामने आ सके." इन महोदय की बात मुझे बहुत जची और मैंने कहा जिस दिन ऐसा हुआ ना सच मानिये आधी जंग हम जीत लेंगे. मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारे सभी संस्थाओं के पदाधिकारी इस रोचक और मजेदार सुझाव पर जरुर गौर करेंगे, यदि उनका दामन स्वच्छ होगा व् वे सचमुच इस प्रथा को ख़त्म करना चाहते होंगे. वर्ना उनके लिए यह तो एक पन्ना है जिसे पलटकर वह अपनी वाहवाही के लिए ऐसे समाज की रीड को तोड़ रहे मुद्दों को नजरंदाज करते बढेंगे.
          दूसरी तरकीब यह होगी कि हमे ऐसे महान दहेज़प्रेमी बंधुओं के विवाह में समिल्लित ही नहीं होना चाहिए. जब कभी कोई  समाज में छोटी-सी भी गलती कर दे, एक भी नियम का उल्लंघन कर दे तो दुसरे पल ही हमारे समाज के कर्ता-धर्ता उनका हुक्का-पानी बंद करवा देते है. फिर क्यों ना ऐसे रुढ़िवादी और स्त्रीशोषी विचारोंवाले लोगों को बहिष्कृत किया जाये. मुझे मालूम है यह पढ़कर कई लोगों के कानो में जूं रेंग गया होगा. असंभव-सी कोई बात मानो पढ़ ली हो. दहेज़प्रेमी तो मुझे मन-ही-मन सौ बददुआयें भी दे चुके होंगे. लेकिन फिर भी हमे एकजुट हो ऐसे लोगो के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी. अब केवल मन से दहेज़ प्रथा के खिलाफ खड़े होने से काम नहीं बननेवाला. अगर आप ऐसा करने से कतराते है तो याद रखे कि कोयले की दलाली में भले ही कितने ही रंग के साबुन लगा कर हाथ धुले कर आये हो हाथ काले हो ही जाते  है. यदि आप चाहते है कि कल आपकी बेटी, भतीजी, नाती-पोती  के लिए लड़का ना खरीदना पड़े तो पूरे उत्साह और दृढ निश्चय के साथ इसके खिलाफ आगे आना होगा.
आज आपका परिवार नहीं जायेगा तो शायद उन्हें इतना दुःख ना हो. लेकिन कल आपसे प्रेरणा लेकर कोई और परिवार नहीं जायेगा तो दो परिवारों की कमी कभी तो खलेगी. आप के अकेले बहिष्कृत करने की हिम्मत ही काफी है ऐसे गलीच कर्मोवाले लोगो के लिए. साथ ही कम-से-कम मन को यह तो संतुष्टि होगी की कम-से कम मैं किसी की बेटी के सौदे में शामिल नहीं हुआ. ईमानदार और सच्चे व्यक्ति की एक नजर ही काफी होती है, लालची और दगाबाजों को उनकी औकात दिखाने के लिए.
      खैर, दुःख तो तब ज्यादा होता है जब जिन लोगो के स्वाभिमान के लिए, हक़ के लिए यह लड़ाई है वही इसके संग नहीं. उन सभी सखियों से यही गुजारिश है कि पैसो से ख़रीदे गए रिश्तो से बेहतर है अकेले जीना. ऐसे रिश्तो को ठोकर मार और ऐसे लडको को सरे आम बेइज्जत करना चाहिए. जब तक हम खुद अपन अधिकारों के प्रति सजग नहीं रहेंगे तब तक लाख कोशिशों के बावजूद आपकी सहायता कोई नहीं कर सकता. जबतक पंछी उड़ना ही ना चाहे, कोशिश ही नहीं करेगा तो कितने ही सुन्दर पंख उसपर सजा दे, कितने ही उड़ने के तरीके उसे सीखा दे वह अपने घोसले से बाहर की दुनियां कभी नहीं देख पायेगा.
           मित्रो अगर सच में आपको लेख पसंद आया हो तो मुझे बधाई देने के बजाय अगर आप दहेज़ ना लेने और देने का प्रण लेंगे तो सही मानियें वह पल मेरे लिए सबसे सफलतम और इस समाज को बेहतर बनाने की दिशा में उज्जवल कदम होगा. आज भले ही मैं अकेली हु लेकिन मुझे विश्वास है कि एक दिन ऐसा जरुर होगा जब उस दहेज़ लेनेवाले बिकाऊ के विवाह में केवल उसकी दुल्हन और पंडित होगा.
आप अपने विचारो से मुझे sonamg.91@gmail.com पर अवगत करा सकते है. आपकी प्रतिक्रिया से कही अधिक आपके प्रण का इन्तेजार रहेगा. 

                                                                                                                                                                                     -सोनम गुप्ता

2 comments:

  1. isase pehle ki lekh maine padi nahi
    dahej ke kilaaf sakt kanooni karwaiyi hogi....tab jaake hi kuch hogaa....soch logonki badalni asaan nahi.....dene wale dete rahenge ...lene wale lete rahenge.....aap ki baaton mai woh dum mai....mere behen ki shaadhi mai humne koi dahej nahi dhi...so kush hai ki humara parivar is pratha se koson door hai.....

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  2. धन्यवाद! नितिनजी अ, अपने विचारो से हमे अवगत करवाने के लिए। दुःख की बात है कि हमारे यहाँ नियम तो कई बनते है, लेकिन उनका पालन नहीं होता। इसलिए हम कितने ही शक्त कानून बनाये, जबतक हम अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होंगे, अपनी संकीर्ण मानसकिता को विकसित नहीं करेंगे।।कुछ नहीं होनेवाला।

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आपकी बेबाक प्रातक्रिया के लिए धन्यवाद!