Friday, April 29, 2011

क्यों लग रहे अपने आज दूर???


जिंदगी में भले ही कितनी भी खुशियाँ हो...लेकिन जबतक आपका दिल खुश नहीं होता सब बेकार है...
दुनियां की सबसे हसीन चीज़ पाकर भी उतनी संतुष्टि नहीं मिलती जितना अपनों से दो पल की बात करने पर... 
सफलता और वीफलता तो चलती रहती है...पर उन में भी अपने करीबियों को खुश रखना,, हर परिस्थिति में उनका साथदेना ही सबसे बड़ी जीत होती है.
हम किसी भी परिस्थिति में होकितने ही व्यस्त हो ...फिर भी  अपनों के लिए हमेशा तैयार रहते है...दिनभर भले हीउनके साथ रहे फिर भी दिन के अंत में उनसे बात किये बिना दिन अधुरा सा लगता है...तो क्या ऐसा भी कोई मानस होगा जिसे अपनों का  का साथ निर्बल बनाता हो...जिसे अपनों से बात करने की फुर्सत ही  हो...जिसे अपनों की कोई परवाह ही  हो???
अगर हातो क्या वे किसी से प्यार नहीं करते...तो क्या वे कभी किसी को अपना नहीं मानते???
 इन सब के बावजूद क्यों उनके अपने उन्हें पुरे मन से चाहते है...???
शायद उनके मन की श्रधा उनपर बनी होती है...शायद उनके प्रियजन उनकी इस व्यवहार को उनकी मजबूरी समझतेहै...शयद हाँ..यही कारण होगा...
और इश्वर करे ...हमेसा उनकी श्रद्धा व् विश्वास ही जीते...वरना उनके विश्वास को ढेर होते वक़्त  लगेगा...
जरा सोचिये अगर  आप जिसके लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे...जिसके इन्तेजार में अपनी हर ख्वाहिश को दबाकर रखे...अपने सपनो के साथ समझौता करे...पर फिर भी उसे आपकी कोई परवाह  हो,...आपकी कोई अहेमिअत हो,...भावनाओ को केवल आंसू समझ कर ध्यान  दिया जाये...तो कैसा महसूस होता होगा
तब सारी आशाएं टूटती-सी नजर आती हैं...उम्मीदें वही ख़त्म हो जाती है...
 अपने पर से ही विश्वास उठ जाता है...और कभी-कभी तो हम खुद की ही नज़रों में गिरने लगते है...हर पल एक गुन्हेगारकी तरह डर में जीते  है ... जबकि हमारी कोई गलती भी नहीं होती...
यह सब बस उस प्यार के लिए...उसके साथ के लिए...उन कुछ पलों के एहसास के लिए...
जब वही अपने आप से अकेलापन चाहते हो...तो क्यों हम बार-बार उन्हें अपने पास वापस बुलाना चाहते है...
क्या हम उनके बगैर जी नहीं सकते...या क्या हम उन्हें अपनी मौजूदगी का एहसास करवाना चाहते है... 
पर वो अगर आपका अपना है तो आपसे दूर ही क्यों रेहान चाहेगाआपसे अछुता क्यों रहना पसंद करेगा?
क्या चौबीस घंटों में से  मिनट अपनों के लिए नहीं होता...क्या  सप्ताह में  मिनट निकलना इतना कठिन है???
 भले ही मन अन्दर से टूट चूका हो...रोज-रोज आँखे रो-रोकर थक चुकी हो...फिर भी यह नर्म दिल...अपने को कठोर बनाकर टूटी उम्मीदों को बांधता है.,..और नए सबेरे की इन्तेजार में...कालेनीले अम्बर की ओर एक टुक आस लगायेनिहारता है...एक बार फिर अपने विश्वास को टूटने के लिए तिल-तिल जोड़ता है...
शायद यही है...विरह में जीना ...शायद यही है...उम्मीदों के सहारे जीवन बिताना...शायद यही है...दिलों-जां से चाहना...

2 comments:

  1. chhoti si sonam ki darshanik baaten.......achcha laga padhkar.keep it up...:-)

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  2. i have no wrds for this superb outstanding touch my herat really
    best of luck

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आपकी टिप्पणिया बेहद महत्त्वपूर्ण है.
आपकी बेबाक प्रातक्रिया के लिए धन्यवाद!