उड़ रहे पंछियों को देखो,
अशांत है आज उनका मन,
रुसवाई का उनके कारण पूछो,
किसके हित हो रहे वे विकल.
पता लगा है अभी-अभी मुझको,
उनकी चिंता का क्या है कारण,
आओ बताये अब हम तुमको,
हुआ है दूर उनका आँगन.
तरु को है मानव ने काटा,
जीवन में एश्वर्य पाने को,
पर छूटा है घर का आटा,
पल-पल फिरे वे दाने को.
पंछियों का हुआ हैं यह हाल,
जीवन बना है उनका दुस्वार,
पलकें भीगा वे मेरे पास आयी,
सारा दुखड़ा मेरे सामने गायी.
रवि की किरणों ने अंग जलाया,
वर्षा की बूंदों ने पंख भिगाया,
ठंडी हवा ने बच्चों को है सताया,
यह सारा किस्सा उन्होंने बताया.
सुन यह पलकें भर मेरी है आयी,
करती हूँ विनंती एक मेरे भाई,
उजाड़ो न तुम इनका जीवन,
बना दो इस धरती को उपवन.
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणिया बेहद महत्त्वपूर्ण है.
आपकी बेबाक प्रातक्रिया के लिए धन्यवाद!