- सोनम गुप्ता
-1-
आसमान को ताकता
पर कटा पंछी
उड़ना चाहता है
एक पल के लिए भूल
जाता है
कि उसके पंख कतर
दिए गए हैं
वो पंछी भरना चाहता
है अपने सपनों की उड़ान
वह पर कटा पंछी
आसमान की ओर देखते हुए
कोशिश करता है,
ऊछलता है
लेकिन, धड़ाम से
गिर पड़ता है औंधे मुंह
जालियों से घिरी
चार दिवारी के भीतर।
-2-
पिंजरा,
जहां दाना है,
पानी है
हवा है, खिलौना
है
लेकिन आजादी नहीं
है
पंछी रोक नहीं
पाया उन्हे, अपने पर कतरने से
पंछी को लगता रहा
हमेशा
अपने ही परों पर
अधिकार नहीं है उसका,
हक है, किसी और
का इन पंखों पर।
-3-
वह चिल्लाता है,
चीखता है
पूरी ताकत से छुड़ा
लेना चाहता है खुद को शिकंजे से
लेकिन
मालिक पैसा कमाना
चाहता है
पर कटे परिंदे
का खेल दिखाकर,
पंछी के पर कतरकर
खुद भरना चाहता है ऊंची उड़ान।
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मालिक तो मालिक ठहरा
और पंछी बेजुबान
पंछी की आंखों
में कातरता और मालिक की आंखों में क्रूरता होती है,
नोंच कर उखाड़
दिए एक-एक करके सभी वो पंख उसके
जो दे सकते थे
उड़ान
पिंजरे में कैद
पंछी उड़ने की आस नहीं रख सकता
कुतुहल का केंद्र
है पिंजरे में बंद पंछी
मान-मर्यादा का
प्रतीक है ये बिना पर का पंछी।
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पर आजादी है
पर मनमुताबिक जीने
का साधन है
पर स्वावलंबी होने
की निशानी है
पर अभिमान है
पर अपने सामर्थ्य
की पहचान है
पालतू बनाने के
लिए पंछी को
पर काटना जरूरी
है
वरना ये पंछी पिंजरा
तोड़कर जी लेगा अपनी जिंदगी
जो पर काटनेवाला
नहीं कर पाया
वह उड़ान भर लेगा
ये परवाला पंछी
इसका घुट-घुटकर
मरना जरूरी है
इसके सपनों का
टूटना जरूरी है
मान-सम्मान का
ढोंग रचना जरूरी है
पंछी के लिए पिंजरा
है
खुली डालियों पर
तो बैठते हैं
आवारा, बेपरवाह
और मस्तमौला पंछी
अपने पर को मजबूत
करते
मीलों उड़ाने भरते
जी भरकर जीते,
विहंग करते पंछी
पिंजरे के भीतर
से
देखता, ताकता नसीब
को कोसता पर कटा पंछी
काट दिए गए जिसके
पंख
मान-मर्यादा और
संस्कार के नाम पर
अब सिर्फ आसमान
में उड़ते हुए पंछियों को ताक रहा है,
वह पर कटा पंछी।
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शरीर भले ही न
उड़ पाए
लेकिन मन की उड़ान
अब भी
दूर क्षितिज तक
भर लेता है
अपनी आंखों में
वह पर कटा पंक्षी।