Wednesday, October 1, 2014

सफाई अभियान उर्फ़ झाड़ू के आ गए अच्छे दिन

-  - सोनम गुप्ता 

बाजार में जैसे सोने का भाव आसमान छूता है, वैसे आज-कल झाड़ू की कीमतें आसमान छू रही हैं। क्योंकि आज-कल नेता कलम नहीं झाड़ू ऊठाने के मूड में है। सबको झाड़ू लगाना है। मुखिया सफाई पसंद आदमी है। इसलिए सब देश का कूड़ा-कचरा साफ करने में लगे हैं। गोमती से यमुना, गंगा,घाघ , सरयू, इत्यादि नदियों को साफ करने और उनके किनारों को चमकाने का बीड़ा भी सरकार ने उठा लिया है। 
           
जिसे देखो बीच सड़क, मैदान, स्टेशन, स्टॉप, आदि-आदि जगहों पर झाड़ू के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं। झाड़ू को भी कुछ-कुछ सैलिब्रिटीवाली फिलिंग आने लगी है। वैसे भी दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद से सुर्खियों में आई झाड़ू को खबरों में रहने की आदत-सी पड़ गयी है। 
           
दरअसल, सारी सरकारें कूड़ा साफ करने की शौकीन होती हैं। पता नहीं मंत्रालय की दिवारों में क्या जादू है, कि कुर्सी हाथ में आते ही सब साफ-सफाई पर ऊतारू हो जाते हैं। सभी भिन्न-भिन्न प्रकार के गंदगी को हटाने के लिए स्वच्छ भारत का अभियान चलाते हैं। तब ही तो एक सरकार ने गरीबी नामक कूड़ा साफ करने की बात की थी। तो इस नई सरकार ने नदियां, सड़के, गांव, मोहल्ला और शहर सबकुछ साफ करने की बात की है। 
      प्रधानमंत्री ने झाड़ू उठाने की बात क्या की। मंत्री के हमेशा चौकन्ने रहनेवाले कानों ने इस बात को सुन लिया और झाड़ू लगाने निकल पड़े देशभर में। यहां मंत्री ने झाड़ू उठाया तो वफादारी दिखाने को आतुर अधिकारी ने भी उठा लिया। अधिकारी ने झाड़ू उठाया तो फिर चपरासी को भी उठाना पड़ा। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में झाड़ू तंतर का गृह प्रवेश हो गया है।  
    वैसे झाड़ू देखते ही एक और सरकार की याद आती है। दिल्ली की अल्पकालीन आम आदमी पार्टी की सरकार। इस सरकार को भी साफ-सफाई का बहुत शौक था। केजरीवाल नामक इस सफाई पसंद पार्टी के मुखिया को तो सफाई करने का इत्ता शौक था, कि उन्होने अपने पार्टी का चुनाव चिन्ह ही झाड़ू रख लिया था। ये चाहते थे कि लोग सेाते-बैठते, ऊठते-जागते सिर्फ झाड़ू और झाड़ू करें। झाड़ू को देंखे, झाड़ू को लगाए और उसी झाड़ू को घर में सजाए। ये लोग अपने झाड़ू से देश से भ्रष्टाचार का सफाया करना चाहते थे। लेकिन इनका झाड़ू मेड इन चायना निकला। कमजोर  झाड़ू ने इनकी सारी योजनाओं पर पानी फेर दिया और भ्रष्टाचार की सफाई से पूर्व केजरीभाई का सूपड़ा साफ हो गया। 
     वे भूल गए थे कि झाड़ू पर बैठकर उड़ान नहीं भरी जा सकती। कोई झाड़ू को कुर्सी पर नहीं बिठाता। झाड़ू की पूजा तो साल में केवल एक ही दिन दीपावली पर होती है। बाकि, दिन तो वह अकेले कहीं कोने में पड़ी रहती है। 
वैसे मोदी के इस सफाई अभियान से झाड़ू बेचनेवालों का खूब फायदा हुआ है। एक बार पहले जब केजरीवाल ने झाड़ू अपनाया था, तब भी झाड़ू का बाजार चढ़ गया था। अब मोदी के अभियान ने फिर से झाड़ू की विक्री बढ़ा दी है। सुना है, घूरे के दिन फिरते हैं। यहां तो घूरा साफ करनेवाले झाड़ू के भी दिन फिर गए हैं। हर कोई झाड़ू के संग अखबारों के पन्नों और चैनल की जगमगाहट में चमकना चाहता है। इस झाड़ू लगाओ कार्यक्रम के माध्यम से सरकार अन्य राजनितिक पार्टियों के इरादों पर भी झाड़ू लगाने की कोशिश में है। 
      झाड़ू के अच्छे दिन गए हैं। इस बात को केवल नेता नहीं बल्कि अभिनेतागण भी बखूबी समझ गए हैं। इसीलिए तो 80 के दशक की सुपरहिट अदाकारा रेखा ने भी फिल्मों में अपनी वापसी के लिए झाड़ू का ही सहारा लिया है। उन्होने हल का स्थान झाड़ू को देकर हमारे देश में झाड़ू के महत्त्व को भी उजागर किया है। 
     स्मृति ईरानी से राजनाथ सिंह तक सबने झाड़ू लगाकर देश की सफाई की शुरूआत कर दी है। अब ये तो समय ही बताएगा कि मंत्री से संतरी तक के इस झाड़ू लगाने की नई नीति क्या इस देश और इस नई सरकार के दिन बदल पाएगी।  लेकिन तब तक ये तो तय है कि किसी के दिन बदले बदले  इस झाड़ू तंतर से झाड़ू के दिन जरूर फिर गए हैं।