वर्षा की क्या लहर बही.
पौधों ने ले ली अंगडाई,
बरखा ने और जोर लगायी,
छप-छप करता भीगा तन,
हो गए सारे गम ख़तम.
वाह! क्या ठंडी पवन चली,
वर्षा की क्या लहर बही.
खिल गयी सारी प्यारी कलियाँ,
बह रही देखो नाली - गलियां,
नदियाँ बहती कल-कल-कल,
झरने करते रिम-झिम-रिम.
वाह! क्या ठंडी पवन चली,
वर्षा की क्या लहर बही.
कुकुरमुत्ते ने अपनी छत्री खोली,
फिर मानव क्यों करता देरी,
देखो काला छाता उड़ता जाता,
खुशियों की बौछार है लाता.
वाह! क्या ठंडी पवन चली,
वर्षा की क्या लहर बही.
चिड़ियाँ बोली चूं-चूं -चूं,
कोयल बोली कूं-कूं-कूं,
बूंदों की लड़ी हुई खड़ी,
धरती आज भीगी पड़ी.
वाह! क्या ठंडी पवन चली,
वर्षा की क्या लहर बही.
Very nice poem sys...kab likha ise?
ReplyDeleteItz realy old...in d year of 2006...bachpan mein...:P
ReplyDeletei think in 2006 me 10th me thi ri8 tab se kya baat hai gud keep it up.
ReplyDeletethx Sandeepji...han maine apni pehli poem tenth ke board exam ke waqt hi likhi thi...:)
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