आज भ्रष्ट्राचार का हैं बोल - बाला,
पीते हैं लोग आनंद से इसका प्याला.
न कोई शर्म दिखाती हैं आँखों में,
न कोई हया झलकती हैं होठों से.
हाथ फैलाते हैं लोगो के बड़े शान से,
देते हैं लोग इन्हे क़र्ज़ भी मांग के.
हाथ लालच के इनके बड़ते जाते हैं,
भ्रष्ट्राचार के लड्डू बड़े मज़े से खाते हैं.
जन्म से मृत्युं तक भ्रष्टाचार भर डाला,
फिर भी न करता कोई इनका मुंह काला.
जनता से रजा तक न हैं कोई बाकि,
फिर चाहे वस्त्र हो श्वेत या ख़ाकी.
बनना हो तुम्हे डॉक्टर या कलेक्टर,
देना ही होगा तुमको अतिरिक्त कर,
कहती हैं आज ये अधर्मी संसार-
कलयुग में यदि दोगे सत्य का साथ,
एक पैसा भी न लगेगा तुम्हारे हाथ.
घूसखोरी जो तुम करते रहोगे,
धन्य - धान्य से झोली भरते रहोगे.
ओ दोस्त मेरे मानो मेरी बात-
निर्दयी हैं ये झूठा, अपमानी संसार,
बने रहो फिर भी तुम यहाँ ईमानदार.
अंत में होती हैं पराजय पाप की,
केवल जरुरत हैं तुम्हारे साथ की.
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