- सोनम गुप्ता
सीएसटी में उतरते ही लगभग दौड़ते हुए टैक्सी स्टैंड तक पहुंची। और टैक्सी को अपने गंतव्य स्थान तक जाने के लिए रुकाने का असफल प्रयास करने लगी। कुछ 3-4 मिनट बीत गए लेकिन कोई टैक्सी केसी कॉलेज जाने के लिए तैयार ही नहीं हुई। मुझे भी कोई बहुत ज्यादा देरी नहीं हो रही थी। बस समय से पूर्व पहुंचने की इच्छा थी। सुबह-सुबह टैक्सीवालों पर बड़बड़ाने का मन भी नहीं था इसलिए शांति से टैक्सी ढूंढने का कार्य मैं बेहद तल्लीनता के साथ कर रही थी। तब ही वहां करीब खड़े मामा यानि ट्रैफिक हवलदार ने मुझसे पूछा, 'एग्जाम आहे का?' मैंने आश्चर्य व संदिग्ता दोनों के भाव एक साथ चेहरे पर लाकर जवाब दिया, 'हो।' मेरे हाथ में फ़िलहाल कोई किताब नहीं थी। ट्रेन में ही वह बुक बैग में जा चुकी थी। ऐसे में मामा को कैसे पता लगा कि मेरी परीक्षा है। इतना मैं सोच ही पायी थी कि उन्होंने मुझसे कहा, "इकडेच थांब। कुठे जाउ नकोस।" इतना कहकर वो आगे चले गए। मैं, उन्हें वहीं खड़ी होकर देखती रही। उन्होंने सड़क के उस पार जाकर एक टैक्सीवाले को हाथ दिखाकर बुलाया। वो टैक्सीवाला अनमना-सा मुंह बनाकर उनके पास अपनी टैक्सी ले आया। उन्होंने टैक्सी को मेरी ओर लाने का इशारा किया और खुद भी कुछ हद तक दौड़ते हुए आए। मुझे टैक्सी में बैठने के लिए कहा और टैक्सीवाले को हिदायत दी कि "इसे केसी कॉलेज के एकदम गेट के पास छोड़ना। इसका एग्जाम है।" टैक्सीवाले ने एकदम अरुचिवाला भाव बनाकर पतले-दुबले मामा को पूरी तरह नजरअंदाज़ करने के लहजे में गियर लगाया।
इतने में आंखों पर चश्मा लागाये मामा ने मुझे टैक्सी में बैठा देखकर इत्मीनान जताते हुए संकोच भरी आवाज़ में कहा, "चांगला कर। आल द बेस्ट।"
मैं, कुछ सोच या कह पाती उससे पहले टैक्सीवाले ने उदास-सा चेहरा बनाकर एक्सीलरेटर को दबा दिया। मेरे मुंह से केवल एक ही शब्द मुस्कान के साथ फूटी, "थैंक यू।"
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