जब मैं स्कूल में थी, तब मेरी एक दोस्त सिर्फ शादीशुदा टीचरों
से ही बात किया करती थी। उन्ही से सवाल-जवाब करती। जो नई-नई टीचरें आई
होती, उनसे वह आंखें चुराती फिरती थी। मैंने कई बार इसकी वजह पूछी तो वो
कहती,"मम्मी ने मना किया है।" मैं समझ ही नहीं पाती कि किस बात के लिए और
कैसे मना किया है ? क्या कहकर मना किया होगा कि जिनके माथे पर सिन्दूर न दिखे उन टीचरों से बात नहीं करनी? कैसे, कैसे? खैर, बहुत जल्द इसका राज़ भी खुल गया।
ओपन डे सरीखा कुछ होता था स्कूल में। जब अच्छे-अच्छों को मम्मी-पापा के
सामने डांट पिलाई जाती थी। तब उसकी माँ भी आई थी। उन्होंने भी उन दो-चार
टीचरों से कम ही बात की। जब मम्मियां आपस में इसके-उसके चक्कर की बातें कर रही थीं, तब उन कुंवारी टीचरों के अछूत होने की वजह पता लगी। दरअसल, उन्हें अपनी
बच्चियों को अभी से ये संस्कार देने थे कि जो महिला शादीशुदा होती है, वही
अच्छी औरत होती है। और जो शादी नहीं करती, वे गंदी होती हैं। गंदे लोगों से दूर रहना ही सबसे सही होता है। क्यों?
एक और वाकया सुनिये। जब मैं कॉलेज में थी तो हमारी एक लेक्चरर थीं, जो
40-45 के क़रीब रही होंगी। ये फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलती कि अच्छे-अच्छों के
मुंह बंद ही रहते थे उनकी क्लास में। हमें खूब मन लगा कर ब्रैंडिंग के
गुर सिखाती थी। हम उनसे बहुत प्रभावित रहते थे। एक अच्छे टीचर के सारे गुण
थे उनमें। उनके कपड़ों (उस उम्र तक कंडीशनिंग कुछ ऐसी थी कि सिन्दूर, साड़ी,
और मंगलसूत्रवाली महिलाएं शादीशुदा और खुशहाल महिलाएं होती हैं) और बातों
को सुनकर हमें हमेशा लगता कि या तो उनके पति नहीं रहे या फिर उनका तलाक हो
गया है। एक दिन हमें खबर लगी कि उन टीचर की तो शादी ही नहीं हुई और वो
अकेले रहती हैं। हाय, तौबा और ना जाने कैसे-कैसे मुंह बन गए हम सब के। ऐसा
कैसे हो सकता है कि किसी औरत की शादी ही ना हो? एक औरत अकेले कैसे रह
सकती है? क्या वो गंदी औरत हैं ? और ना जाने क्या-क्या हमारे कच्चे दिमागों
ने सोच लिया और अपनी-अपनी समझ से उन मैडमजी का चरित्र गढ़ लिया। करियर या शादी? या दोनों? |