लेडिस स्पेशल ट्रेन, लेडिस स्पेशल बस, लेडिस स्पेशल बैंक और ना जाने क्या-क्या लेडिस स्पेशल हो गया हैं। देश में हर जगह महिलाओं के लिए हर चीज़ की स्पेशल एडिशन बन रही है। हर क्षेत्र में, हर गली-मोहल्ले में लेडिस स्पेशल की एक सुविधा जरुर होगी। ऐसी किस्म-किस्म की स्पेशल सुविधाओं के बीच महिलाएं अपने को स्पेशल महसूस करने लगती हैं। वे समझ ही नहीं पा रही कि ऐसी स्पेशल सुविधाओं के सहारे उन्हें मुख्य धारा से दर किनार किया जा रहा है। सबकुछ अलग से देकर वे चाहते है कि हम उतने में ही खुश हो जाए और इस पुरुषप्रधान समाज के बीच दखल न दे। अगर देर हो रही हो तो बगल में खड़ी महिला विशेष बस में चढने की बजाय आप तुरंत निकल रही बस में चढ जाय तो सभी पुरुष आपको हिकारत की नजर से देखेंगे। साथ ही उस बस में न चढ़कर इसमें सवार होने के लिए ताना भी मारेंगे। बिजली, पानी और सड़क की ही तरह अब महिलाएं भी सत्ताधारियों के लिए एक अहम् चुनावी मुद्दा बन गयी है। उन्हें हमारी शक्ति और सामर्थ्य का अंदाज़ा है। वो तो हम महिलाएं है जो थोड़े में खुश रहना पसंद करती है। मुख्यधारा से हट कर भी संतुष्ट हो रही है। महिलाओं की जमात जो कि दुनियां की आधी आबादी है-कहीं उनके लिए स्पेशल योजनाएं सिर्फ वोट बैंक भरने का एक हथकंडा तो नहीं? दलित, अनुसूचित जातियों और शारीरिक व् मानसिक रूप से असमर्थ लोगों के लिए आरक्षण की राजनीति का इस्तेमाल किया जाता है। कही वहीँ तरीका महिलाओं पर तो नहीं आजमाया जा रहा? जहां हमारे संविधान में स्त्री-पुरुष समानता की बात कही गयी हो। वहीं आरक्षण के दायरे में महिलाओं को बांधकर राजनितिक पार्टियां क्या साबित करना चाहती है? क्या यह उन्हें मुख्यधारा से अलग करने की साजिश नहीं है?
Sunday, March 24, 2013
महिलाओं को मुख्यधारा से अलग करने की साजिश
लेडिस स्पेशल ट्रेन, लेडिस स्पेशल बस, लेडिस स्पेशल बैंक और ना जाने क्या-क्या लेडिस स्पेशल हो गया हैं। देश में हर जगह महिलाओं के लिए हर चीज़ की स्पेशल एडिशन बन रही है। हर क्षेत्र में, हर गली-मोहल्ले में लेडिस स्पेशल की एक सुविधा जरुर होगी। ऐसी किस्म-किस्म की स्पेशल सुविधाओं के बीच महिलाएं अपने को स्पेशल महसूस करने लगती हैं। वे समझ ही नहीं पा रही कि ऐसी स्पेशल सुविधाओं के सहारे उन्हें मुख्य धारा से दर किनार किया जा रहा है। सबकुछ अलग से देकर वे चाहते है कि हम उतने में ही खुश हो जाए और इस पुरुषप्रधान समाज के बीच दखल न दे। अगर देर हो रही हो तो बगल में खड़ी महिला विशेष बस में चढने की बजाय आप तुरंत निकल रही बस में चढ जाय तो सभी पुरुष आपको हिकारत की नजर से देखेंगे। साथ ही उस बस में न चढ़कर इसमें सवार होने के लिए ताना भी मारेंगे। बिजली, पानी और सड़क की ही तरह अब महिलाएं भी सत्ताधारियों के लिए एक अहम् चुनावी मुद्दा बन गयी है। उन्हें हमारी शक्ति और सामर्थ्य का अंदाज़ा है। वो तो हम महिलाएं है जो थोड़े में खुश रहना पसंद करती है। मुख्यधारा से हट कर भी संतुष्ट हो रही है। महिलाओं की जमात जो कि दुनियां की आधी आबादी है-कहीं उनके लिए स्पेशल योजनाएं सिर्फ वोट बैंक भरने का एक हथकंडा तो नहीं? दलित, अनुसूचित जातियों और शारीरिक व् मानसिक रूप से असमर्थ लोगों के लिए आरक्षण की राजनीति का इस्तेमाल किया जाता है। कही वहीँ तरीका महिलाओं पर तो नहीं आजमाया जा रहा? जहां हमारे संविधान में स्त्री-पुरुष समानता की बात कही गयी हो। वहीं आरक्षण के दायरे में महिलाओं को बांधकर राजनितिक पार्टियां क्या साबित करना चाहती है? क्या यह उन्हें मुख्यधारा से अलग करने की साजिश नहीं है?
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Sonam, Accha laga padke bt Mera Question Tum se yah hai ki agar tumhe politics me ja ke kuch karne ka mauka mile spcly on womens ri8s will u join politics ???
ReplyDeleteमहिलाओं के हक़ के लिए कुछ करने का का मौका मिलेगा तो जरुर करना पसंद करुँगी। मौका मिले लेकिन बंधन के बगैर।
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