सूरज ने सोखा धरती के जल को,
धरती हुई आज फिर बंजर देखो.
बादल ने सोचा क्यों तपते हैं लोग,
करने को त्याग किया उसने शोर.
झठ से काले बादल छा गए,
धरती के घर अतिथि आ गए.
भूमि ने फिर स्नान किया,
खेतों ने भी फिर धान दिया.
नदियाँ भी प्रफुल्लित हो गयी,
झरने भी कल-कल बहती चली.
इन्द्रधनुष ने सात रंग दिखाएँ,
नाले - नालियाँ तो बहते जाएँ.
बच्चों के चेहरे पर खुशियाँ आयी,
छाता भी खुल गए घाई - घाई.
पंख पसारे झूमकर नाचा मयूरा,
कोयल का भी हुआ ख्वाब पूरा.
हरयाली हैं चारो ओर छायी,
दुख के बदल कट गए भाई!
दूर हुई पुनः सारी तन्हाई,
आज फिर वर्षा ऋतु आयी.
nice 1.....
ReplyDelete