लम्बा कद, सुडौल काठी, स्वस्थ शरीर, साफ़ रंग, आदि शारीरिक गुणों की चाह तो हर किसी स्त्री को अपने जीवनसाथी के लिए होती है. पर इस पर भी उस अबला नारी के भाग्य पर सब निर्भर होता है कि उसके स्वप्न का राजकुमार उसके वास्तविक जीवन में मिलेगा भी या नहीं. सब कहते है मैं भावनाहीन हूं. मुझे प्रेम न होगा और ना ही मैं कभी किसी को दिलोजा से चाह पाऊँगी. पर भीतर की वृंदा ऐसी है ही नहीं. मेरे भी सपने है. मैंने भी अपने अंतरमन में अपने राजकुमार की छवि बना रखी है. उस छवि में न केवल शारीरिक रूप, रंग का धुन्दला चित्रण है, बल्कि उसके साथ ही मैंने कुछ विशेष गुणों को महत्ता दी है. हाँ, इस बात को धुतलाना सरासर नाइंसाफी होगी कि मुझे लड़कों कि आकर्षक मांस्पेशियोंवाली शारीरिक रचना हमेशा से ही लुभावनी लगी है. पर उनसे कहीं ज्यादा उसके व्यवहार और कुछ भीतरी गुणों को मैंने विशेष स्थान दिया है. अगर सुन्दरता के मामले में वह एक नंबर पीछे भी हो तो कोई फरक नहीं होगा पर उसके प्रेम और निष्ठा में थोड़ी भी कंजूसी हो तो वह व्यक्ति मेरी समझ से तो परे है. वह आकर्षक होने के साथ ही साथ विद्वान, स्वाभिमानी, समझदार, परिवार प्रेमी, रोमानी और सामाजिक प्राणी हो.
लड़कियों की पसंद ना पसंद कि सूची कभी ख़त्म नहीं होती. तो स्वभाविक है एक स्त्री होने के नाते मेरे स्वभाव में इस गुण को आप पाएंगे. सामाजिक कार्यों से जुड़े होने के कारण मैं हर पल समाज के विभिन्न लोगों के भिन्न-भिन्न रहन-सहन से रु-ब रु होती रहती थी. मेरे सपने, मेरी चाह अपने स्वप्न राजकुमार को लेकर कौमप्रमाइस करने लगे थे. समाज के विभिन्न पहलुओं से सामना होने पर मेरे सपनो के सुनहरे संसार का गुब्बारें फूटते गए और अंत में मैंने हार मानकर वास्तविकता में प्रवेश किया. अपने मन को मना लिया कि वास्तविक संसार में काल्पनिक जग का वो राजकुमार सफ़ेद घोड़ी पर बैठकर सिर्फ और सिर्फ तुम्हरी चाह में दौड़ा नहीं आएगा. मेरे मन में घर बना चुके इस नीरस विचार में अब रंग भर पाना मेरे बस में न था. जीवन में स्वार्थ और स्वहित का महत्त्व मैं अच्छी तरह जान चुकी थी.
लेकिन अपने सपनो के टूटने के दुःख में मैं यह तो भूल ही गयी थी कि ईश्वर ने सारे चेहरे एक जैसे नहीं रंगे. अब भी कुछ के मुख पर वह अलग चमक, वह आकर्षण, वह चेतना है जो दूसरों को आकर्षित कर ले. ऐसे ही एक अदभुत आत्मा का सानिध्य मुझे मिला. उस व्यक्ति से मिलने के बाद मन में एक विश्वास जागा कि यहां अब भी स्वहित में 'स्व' के स्थान पर 'पर' जोड़नेवाली आत्माएं जीवंत है. चेहरे में रंग रूप में कोई अलग न था और ना ही सबसे खुबसूरत. उसकी बोली-भाषा में भी कोई विशेष अंतर न था. एक साधारण पुरुष की तरह उसकी भी दो आँखें, कान, नाक थे. बस अगर कोई अंतर था तो वह उसके चरित्र, सोच, प्रेम करने की इच्छा और अभिलाषा का था. उसका वह निस्वार्थ प्रेम, दिल को छु लेनेवाले शब्द, सौम्य व्यवहार भीड़ में भी उसकी एक अलग पहचान बनाता था. मानो उसका सांवला रंग उसकी सच्ची भावनाओं का श्वेत सबूत था. दोस्ती की गहरायी को तो जैसे उससे बेहतर कोई भाप ही न पाया हो. सच्चे प्रेम को तो उस पवित्र आत्मा ने कहानियों से परे इस कलयुग में नया अर्थ दिया था. अपनी प्रेमिका की एक मुस्कान के लिए घंटों मेहनत करना एक बूंद पानी उसकी आँखों से न टपकने पाए उसके लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करनेवाले हीरो के अस्तित्व को तो मैंने केवल कहानियों में ही सुना था. इस अनोखे प्रेमी की मुलाकात ने मुझे उन कहानियों के हीरों का वास्तविक चित्रण करने में बेहद सहायता की. भले ही वह अपने जीवन में, अपने रोजमर्रा के कामों में सर्वश्रेष्ठ या सफल नहीं रहा हो. पर फिर भी उसका अनोखा व्यक्तिमत्व उसे बाकियों से ख़ास बनाता. अपने दोस्तों के दर्द और भावनाओं के संग उनकी कमियों को भी समझना और हर परिस्थिति में उनकी सहयता करने को वह बोझ नहीं बल्कि, अपना फ़र्ज़ समझता था. अपनी प्रेमिका के सौहादर्य के लिए उसने अपने सबसे जिद्दी और बुरी आदत को दो पल में छोड़ दिया.
इस कलयुग में जहा लड़के-लड़कियां हर पल प्रेमी-प्रेमिकाएं कपड़ों की तरह बदती है. वहीं अपनी प्रेमिका को अपने जीवन में उच्च और सम्मानीय स्थान देकर उसके अस्तित्व की रक्षा करता. ऐसा कहा जाता है, कि मुश्किल के दौर में इंसान को अपने सच्चे साथी का पता लगता है. गौरतलब है, कि वह हमेशा ख़ुशी से ज्यादा मुश्किल के समय अपनी सारी परेशानियों को भुलाकर अपने जीवनसंगिनी का साथ देने के लिए अग्रसर रहता. फिर चाहे बात हो घंटों अपनी प्रेमिका का शांतिपूर्वक इंतजार करने कि या उसके इंतजार करने पर उसे मनाने कि वह दोनों में ही हमेशा सफल प्रेमी साबित हुआ. आश्चर्य है, कि अपनी प्रेमिका या दोस्तों को सम्मान देते वक्त कभी उसने अपने स्वाभिमान पर आंच भी आने दी हो. बड़े ही आत्मसम्मान व् निष्ठा के साथ उसने अपने निश्वार्थ प्रेम से अपने प्रियजनों को लाभान्वित किया. प्रेमिका की प्रत्येक गलती को क्षम्य और नगण्य माना वहीं स्वयं द्वारा उसके समक्ष उठी प्रत्येक ऊँची और रोषपूर्ण स्वर को उसने अपराध समझा. अपनी प्रेमिका से किसी भी तरीके की उम्मीदों को कोसो दूर रखता. अपने प्रेम के प्रति उसकी दीवानगी इस कदर थी कि उसके प्रेमिका की एक ख़ुशी उसके जीवन का लक्ष्य बन जाता. लेकिन मानव मन की चंचलता-चपलता ने उसे पूरी तरह से अपने आवेग से मुक्त नहीं किया था. आम आदमी की तरह कभी-कभी उसपर कुछ पलों के लिए स्वार्थ भी हावी हो जाता. यह गलत भी न था किसी का सीमा से अधिक अच्छा होना भी नुकसानदेह होता है. थोडा स्वार्थ न हो तो किसी को अपना बनाने की चाह भी न होगी.
प्रेरणा बनता वह अपनी प्रेमिका के लिए. विश्वास के डगमगाते हर पल में उसने अपने प्यार के सहारे अपनी प्रेमिका में एक नए साहस को भरता. अपनी प्रेमिका को उन्मुक्तरूप से गगन में उड़ने के लिए उसके पीछे पर सजाता.उसकी हर ख़ुशी को अपनी सफलता समझता. खुद के जेब में भले ही अठन्नी न बचे पर प्रेमिका के जरुरत पर उसे एक-एक जमा पूंजी जुटाकर देने पर कभी दूसरी दफा न सोचता. ऐसे मनुष्य से मुलाकात ने मेरे भीतर दबी हुई पुराणी छवि को फिर से सामने ला खड़ा कर दिया. मैं अपने सपनो के, अपनी कल्पनाओं के राजकुमार को अपने सामने देख रही थी, पर कहा ऐसे भाग्य हमारे वह था तो मेरे सपनों के राजकुमार-सा हुबहू लेकिन उसके दिल पर और कोई राज़ कर रहा था. खैर , अब मन फिर से उमंगों और आशाओं से भरा हुआ है. हाँ, लेकिन अब फर्क इतना है कि अब उम्मीदों में नए दौर कि सोच, व्यवहारिकता ने अपने अलग से रंग भर दिए है. शायद इस तरह सपने देखना व् उम्मीदें रखना भी जरुरी है. फिर चाहे वह पुरे हो या न हो. ज़िन्दगी का असली मज़ा सबकुछ पाने में ही नहीं है, कुछ खोने का भी अपना एक अलग ही अनुभव है.
sundar lekh....
ReplyDeleteBahut dil se likha hain...Sachhaiey hain..Keep it up..:)
ReplyDeleteyour writing skills are real good !
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